🌻धम्म प्रभात🌻
[एक भिक्षु की कहानी]
अगर भीतर की परिस्थिती ठिक है तो बाहर की खराब से खराब परिस्थिती भी व्यक्ती का कुछ बिगाड नही सकती।
जापान की एक गांव में एक भिक्षु रहता था। वह युवा होने के साथ-साथ बहोत सुंदर भी था। गाव में उसकी बडी ख्याती थी। लोग उसका बडा आदर सन्मान करते थे। लेकीन एक दिन स्थिती बदल गई । गांव के सारे लोग उसके विरोधी हो गए। सारा गांव उसकी झोंपडी पर तूट पडे। लोगोने जाकर पथर फेंके, उसकी झोंपडी को आग लगा दी। वह भिक्षु पुछने लगा बात क्या है? मामला क्या है? आप लोग ऐसा क्यों कर रहे है?
लोगोने जाकर उस भिक्षु की गोद में एक छोटेसे बच्चे को पटक दिया और कहने लगे, जानकर भी मामला पुच्छते हो! गांव की एक लडकी को बच्चा हुवा है, और यह बच्चा तुम्हारा है। उस लडकी ने कहा है, इस बच्चे के बाप तुम हो। हमसे बडी भूल हो गई जो हमने तुम्हे इतना बडा सन्मान दिया, हमसे बहोत बडी भूल हो गई जो हमने तुम्हारे लिये ये झोंपडी बनवाई और तुम्हे इस गांव में रहने दिया पर तुम इतने चरित्रहीन निकलोगे हमें पता नही था, यह बच्चा तुम्हारा है।
वह बच्चा रो रहा था। वह भिक्षु उस बच्चे को चुप करता है और उन गांव वालो से कहता है, अगर ऐसा है तो ठीक है, मैं इस बच्चे को पालुंगा। वे लोग गालिया देकर उस भिक्षु की झोंपडी को आग लगाकर वहा से चले गए। दोपहर होने पर वह भिक्षु गांव में भिक्षाटन के लिये निकलता है । साथ में उस बच्चे को अपनी गोद में लेकर भिक्षाटन करने चला।। शायद ही दुनिया में कोई भिक्षु इस तराह से किसी बच्चे को गोद में लेकर भिक्षाटन के लिये निकलता हो। वह बच्चा भुख के मारे रो रहा था। वह भिक्षु गांव के पहले द्वार पर जाता है और भिक्षा मांगता है लेकीन उसे भिक्षा नही मिलती है। वह उस गांव के हर द्वार पर जाता है लेकीन उसे भिक्षा कोई नही देता है। हर कोई उसे देखकर अपने घर का दरवाजा बंद कर लेता है। फिर उस गांव का आखरी घर बचता है, वह उस लडकी का घर था जिसने कहा था की उस बच्चे का बाप वह भिक्षु है। वह भिक्षु उस द्वार पर भी जाता है और कहता है, मुझे भिक्षा देना नही चाहते हो यह ठीक है, परंतु कम से कम इस छोटे बच्चे को तो दुध दे दिजीए, यह भुख के मारे रो रहा है। मेरा दोष हो सकता है लेकीन इस बच्चे का क्या दोष है? उस भिक्षु की बात सुनकर जिस लडकी का वह बच्चा था उसका हृदय पिघल जाता है, वह अपनी पिता के पैरो में गीरकर कहती है, पिताजी मुझसे भूल हो गयी, मैंने झूठ कहा था की यह बच्चा इस भिक्षु का है, यह बच्चा किसी ओर का है, मुझे क्षमा कर दिजीए, इसका पिता कोई ओर है, उसी को बचाने के लिये मैंने इस भिक्षु का नाम लिया था। अपनी बेटी की बात सुनकर वह पिता बहोत हैरान हो गया और घर के बाहर आकर उस भिक्षु से क्षमा मांगता है। गांव के अन्य लोगो को भी इस हकीकत बारे में पता लगता है। वे उस भिक्षु के हाथ से उस बच्चे को लेने लगते है। वह भिक्षु उन गांव वालो से पुछता है- क्या हुवा भाई आप मुझसे मेरे बच्चे को छिन क्यों रहे है? वे गांव वाले कहते है, भन्ते जी! हमें क्षमा कर दिजीए, हमसे बहोत बडी भूल हो गयी। यह बच्चा आपका नही है, किसी ओर का है। वह भिक्षु कहता है, सच में क्या यह बच्चा मेरा नही है ? लेकीन सुबह तो आपने इसे मेरा बच्चा बताया था। गांव वाले कहते है, भन्ते जी ! हमें क्षमा कर दिजीए, हमसे बडी भूल हो गयी। भन्ते जी! जब आपको पता था की यह बच्चा आपका नही है तो आपने मना क्यों नही किया? वह भिक्षु मुस्कुराता है और कहता है, क्या फर्क पडता है की यह बच्चा किसका है? एक व्यक्ती को गालिया तुम दे ही चुके थे, एक झोंपडी तुम जला ही चुके थे और अगर मैं बता देता की यह बच्चा मेरा नही है तो तुम एक ओर व्यक्ती को गालिया देते, एक घर ओर जलाते। लोग कहते है- भन्ते जी ! क्या आपको अपने सन्मान की परवाह नही थी? भिक्षु हसता है और कहता है, जिस दिन से यह दिखाई दिया की जो बाहर है वो सब सपना है, उस दिन से ना सन्मान प्रभावित करता है,ना अपमान। बात सन्मान और अपमान की नही है, बात है बुरी से बुरी स्थिती में भी अपने भीतर शांत रहने की। अगर वह भिक्षु उन गांव वालो से मना भी करता तब भी वे लोग नही मानते और अगर वह उस बच्चे को लेने से मना करता तो वे गांववाले उस बच्चे को मार भी सकते थे और एक करुणावान व्यक्ती कभी नही चाहता की उसकी वजह से किसी के प्राण जाए।
यहा पर सबसे बडी बात जो समझने वाली है वो यह है की उस भिक्षु ने बाहरी खराब परिस्थिती को अपने भीतर की शांति पर हावी नही होने दिया। अब प्रश्न उठ सकता है की ऐसा वह भिक्षु कैसे कर पाया? ऐसा वह इसीलिये कर पाया क्योंकि उसके पास ध्यान की शक्ती थी।
अगर भीतर की परिस्थिति ठिक है तो बाहर की खराब से खराब परिस्थिति भी व्यक्ती का कुछ बिगाड नही सकती”
नमो बुद्धाय 🙏🙏🙏
09.05.2022