शुक्रवार को इस्तीफे लेने नहीं पहुंचे भाजपा जिलाध्यक्ष<
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जहां नाराज कार्यकर्ताओं ने दीवार पर चिपकाए इस्तीफे, वहीं पार्षद उम्मीदवारों की सूची जारी होते हुए सक्रिय कार्यकर्ताओं ने भी दिखाई नाराजगी
दमोह।
नगर पालिका चुनाव के ऐन मौके पर नाराज वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के इस्तीफों का दौर अब भाजपा के लिए परेशानी का सबब बनने लगा है। वर्षों से पार्टी में कार्य कर रहे कार्यकर्ताओं की उपेक्षा दलबदलुओं को प्राथमिकता देने के आरोपों में घिरी पार्टी को लगातार कार्यकर्ता अपने इस्तीफे सौंप रहे हैं। शुक्रवार को भी यही दौर जारी रहा और फिर कार्यकर्ताओं व पूर्व पदाधिकारियों ने अपने इस्तीफे दिए।
जिला अध्यक्ष नहीं आए तो दीवारों पर चिपका दिए इस्तीफे
लगातार इस्तीफों का दौर अब भाजपा के लिए गले की फांस बनता हुआ दिखाई दे रहा है, ऐसे में जब शुक्रवार को कार्यकर्ता इस्तीफा देने पहुंचे तो भाजपा जिला अध्यक्ष उनके इस्तीफे के लिए वहां मौजूद नहीं थे। काफी इंतजार के बाद इस्तीफे लेकर आए लोग अपने इस्तीफे दीवार पर चिपका कर लौट आए। माना जा रहा है कि लगातार ऐसे हालातों से अब जिलाध्यक्ष पर जवाबदेही बढ़ रही है और इस कलह के चलते आमजन के बीच भी भाजपा की किरकिरी हो रही है। यह सब देख देख जिलाध्यक्ष मामलों से खुद को दूर करना चाहते हैं।
इनके हुए इस्तीफे
शुक्रवार को 9 लोगों में महामंत्री मनोज अग्रवाल,श्रीमती वंदना चौरसिया,नितिन चौरसिया,श्रीमती पूजा राज,श्रीमती उषा विनोद अग्रवाल, श्रीमती कविता संजू यादव, श्रमेश जैन खजरी, इस्लाम पठान,शादाब खान,श्रीमती शालिनी आशीष नेमा ने भाजपा कार्यालय पहुँच कर अपना इस्तीफा दिया।
उम्मीदवारों की सूची जारी होते ही सक्रिय कार्यकर्ताओं में भी दिखी नाराजगी
वही इन सब के बीच भाजपा ने नगर पालिका दमोह के 39 वार्डों में से 36 वार्डों लिए देर शाम अपने उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी। जिसमें युवा चेहरों के साथ इस बार इस बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े चेहरों को भी प्राथमिकता दी गई है। हालांकि सूची जारी होने के साथ ही भाजपा की ओर से अपनी दावेदारी पेश कर रहे दर्जनों कार्यकर्ताओं में भी नाराजगी देखी गई और सोशल मीडिया के माध्यम से कितने ही लोग निर्दलीय के रूप में मैदान में डटे रहने की बात कहने लगे। हालांकि नगर पालिका चुनाव में टिकट वितरण को लेकर क्या नाराजगी कोई नई बात नहीं है और भाजपा ही नहीं कांग्रेस सहित अन्य दल भी इसी तरह की परेशानियों से हमेशा रूबरू होते रहे हैं। कई बार ऐसे नाराज चेहरों को समझा लिया जाता है और कई बार ऐसे ही दावेदार पार्टियों का समीकरण भी बिगाड़ देते है।