पुलिस द्वारा समझाएं दिए जाने के बाद मामला हुआ शांत
दमोह।
जिला अस्पताल दमोह में बुधवार रात हंगामे के हालात बन गए जब खेत में काम कर रहे किसान की करंट लगने से मौत होने के बाद उसके परिजन शव का पोस्टमार्टम नहीं कराने के लिए अड़ गए। हालात यह बने कि मामले में पुलिस को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और कोतवाली थाना प्रभारी विजय सिंह राजपूत द्वारा समझाइश देने के बाद परिजन शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए राजी हुए।
जिसके बाद गुरुवार को शव के पोस्टमार्टम की कार्यवाही की गई। प्राप्त जानकारी अनुसार तेजगढ़ थाना निवासी कालूराम उर्फ कालू पुत्र गोपी चक्रवर्ती 45 वर्ष बुधवार रात अपने खेत पर काम करने के लिए गया था इसी दौरान भाई करंट की चपेट में आ गया परिजनों द्वारा उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल लाया गया जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
क्यों जरूरी है पोस्टमार्टम
यह सही है की पोस्टमार्टम के दौरान शव के साथ चीर फाड़ की जाती है, और कोई भी व्यक्ति अपने परिजन को इस तरह से नहीं देखना चाहता जिसके चलते लोग पोस्टमार्टम का विरोध करते हैं।लेकिन यह जानना भी जरूरी है कि आखिर यह प्रक्रिया क्यों आवश्यक होती है और पुलिस क्यों कई मामलों में इसे अनिवार्य करती है।
पोस्टमार्टम यानी शव परीक्षण या ऑटोप्सी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति के मौत के कारणों का पता लगाया जा सकता है। असामान्य मृत्यु के मामले में इन कारणों का पता लगाना जांच के लिए अति आवश्यक होता है जिसके चलते पोस्टमार्टम की प्रक्रिया की जाती है।यह एक सर्जिकल प्रोसेस है जिसमें पहले शब्द के बाहरी हिस्सों में चोटों आदि की जांच की जाती है और उसके बाद शव को चीर कर आंतरिक हिस्सों की जांच की जाती है। इस दौरान शव कई हिस्सों से चीर कर शरीर के कुछ अंगों को बाहर भी निकाला जाता है और विशेषज्ञों द्वारा उनका परीक्षण कर पुनः शव में रखकर शरीर को सिल दिया जाता है।
क्या है शव परीक्षण से जुड़े नियम
1.किसी भी असामान्य मौत पर यह आवश्यक है ऐसे मृतक के शव का पोस्टमार्टम किया जाए लेकिन वह परिजनों की अनुमति से हो। यानी परिजनों की अनुमति आवश्यक है और चिकित्सा विभाग मनमर्जी से शव परीक्षण नहीं कर सकता।
2.मौत के 6 से 10 घंटे के अंदर शव परीक्षण किए जाने के प्रयास होने चाहिए ताकि मौत के बाद आ रहे बदलावों का असर जांच करना पड़े।
3.यदि किसी कारण समय पर सब परीक्षण नहीं हो पा रहा है तो प्रयास किए जाने चाहिए कि शव को सुरक्षित रखा जाए।
4.शव परीक्षण दिन के उजाले में ही किया जाए क्योंकि रात मैं सामान्य लाइट नहीं होती जिसके चलते शरीर के घावों का रंग बदल जाता है इससे परीक्षण सही तरीके से नहीं होता। हालांकि यह एक दशकों पूर्व बनाए गए नियम है जब बिजली की सही व्यवस्थाएं नहीं थी और मसालों की रोशनी या कुछ समय पूर्व तक पीले साधारण बल्ब ही रोशनी के साधन थे, जिसके कारण घावों का रंग बदलता दिखाई देता था।नए समय में अब इतनी व्यवस्थाएं है कि दिन के उजाले जैसी रोशनी शव परीक्षण ग्रह में हो सकती है। इसीलिए महत्वपूर्ण मामलों या आवश्यक स्थितियों को देखते हुए मजिस्ट्रेट के आदेश पर रात में भी शव परीक्षण किया जा सकता है।
5. शव परीक्षण विशेषज्ञों (विकृति विज्ञानी) की उपस्थिति में ही किया जाए।
6. गवाहों की उपस्थिति में किया जाए शव परीक्षण