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करवट बदलती राजनीति ….

हालिया चुनाव

करवट बदलती राजनीति

कॉंग्रेस रणनीति ने मोदी ब्रांड को किया फिसड्डी।अपने घोषणापत्र में बजरंग दल बैन का ज़िक्र कर कॉंग्रेस ने जो सोची समझी जोखिम का पांसा फेका था बीजेपी उस मकड़जाल में फंस गई। कांग्रेस चरखा दांव फलीभूत होता दिख रहा है। इस रणनीति से कोस्टल और मैसूर में लाभ लेने की योजना रही होगी जहां जेडीएस का प्रभाव था। वोक्कालिगा मतों पर निस्संदेह एचडी देवेगौड़ा, कुमार स्वामी की बेजोड़ पकड़ है परन्तु चुनावी परिणाम हेतु अन्य मतों के ध्रुवीकरण की भी आवश्यकता होती ही है। चुकि मैसूर क्षेत्र में चुनावी संग्राम में दो ही सेनाएँ रणभूमि में थी कॉंग्रेस और जेडीएस फलस्वरुप जेडीएस के मतों में सेंध लगाने की योजना कॉंग्रेस ने बनाई होगी! ख़ासतौर पर मैसूर क्षेत्र की 59 विधानसभाओं और कॉस्टल की 19।

इन क्षेत्रों में बढ़त के लिए मुस्लिम मतों का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण दोनों दलों की रणनीति का हिस्सा होगी। बाज़ी कांग्रेस ने मार ली। जहां भाजपा चुनावी संघर्ष में न हो वहां जब मुस्लिम मतों को अपने पक्ष में लामबंद करना हो तब प्रदर्शित करना पड़ता है कि कौन ऐसा दल जो हिन्दू के नाम उग्रता फैलाने वाले दलों को सज़ा दे सकता है? मुस्लिम दानिश्वर बन सकता है। कांग्रेस बजरंग दल पर बैन लगाने की कार्ययोजना को अपने घोषणा पत्र में शामिल कर मुस्लिम समुदाय को पैगाम देने में सफ़ल रही। वैसे भी मुस्लिम समुदाय में यह संदेश पहले से ही तैर रहा था कि जेडीएस न तो अपने दम पर सरकार बना सकती है और न ही स्थाई सरकार देने पर प्रतिबद्ध रह सकती है। जेडीएस को वोट करने का अभिप्राय होगा एक मोल तोल करने वाले को अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनने का महा पाप करना। यह कठोर सन्देश उप्र में 2022 के चुनाव में दिया गया था। प्रधान मंत्री बनने के सपने में विभोर बहन जी( मायावती जी) को विधान सभा चुनाव में खाते खोलने के लाले पड़ गए थे।

2018में कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने वोट शेयर बीजेपी की तुलना में अधिक हासिल किया था लेकिन सीट कम थी। 2018 चुनाव परिणाम के मुताबिक़ कांग्रेस ने 38.14% वोट हासिल करने के बावजूद 80 सीट ही जीत पाई। जबकि बीजेपी ने 36.25% वोट हासिल कर ही 104सीट जीतने में कामयाब हो गई थी। वहीं जेडीएस 18.3%मत पाकर 37 सीट जीत गई थी। कर्नाटक राज्य के मतादाताओं के मस्तिष्क में यह बात बार बार उमड़ घुमड़ रही होंगी कि यदि 2018 में जेडीएस को मैसूर में तरजीह देने की गलती न की होती तो बीजेपी सरकार की ज्यादतियां बर्दाश्त न करनी पड़ती।

कोस्टल और मैसूर क्षेत्र के वोटिंग ट्रेंड इंगित करते हैं कि कांग्रेस बड़ी लीड की तरफ़ बढ़ रही है। 13 मई के चुनावी परिणाम तस्दीक करेंगे कि इन क्षेत्रों में कांग्रेस 85%सीट अपनी झोली में डालने में सफ़ल रहेगी। जेडीएस दहाई के आंकड़े तक पहुंच जाए तो बड़ी उपलब्धि होगी। बीजेपी जो भी सीट हासिल करेगी उसे बोनस ही समझे। कांग्रेस को बेहतर आभास था कि मोदी जी के पास 40% भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बोलने को कुछ भी नही होगा। उनकी ताक़त उनके काल्पनिक आराध्य और फितरत है। चुनाव में वह बजरंग दल बैन के मुद्दे को किसी न किसी रूप में भावनात्मक लगाव से जोड़कर चुनावी वैतरणी पार करने की कोशिश अवश्य करेंगे। इसीलिए कांग्रेस ने यह नक़ल बॉल फेंकी थी।

कर्नाटक एक विकसित राज्य है। नागरिक जागरूक हैं जैसे ही मोदी जी ने सोनिया गांधी को इशारा करते हुए निशाने पर लेकर तंज कसा कि कांग्रेस के लोग अपने हार से इतने भयभीत हैं कि स्वास्थ्य ख़राब होने के बावजूद वह चुनाव प्रचार के लिए आ रहे हैं। ख़ुद हर रैली में बजरंग बली की जय का शंखनाद करने लगे। कर्नाटक की जनता समझ गई कि बजरंग दल की उद्दंडता उनकी स्वयं की ऊपज नही अपितु बीजेपी पोषित है। पीएम का बजरंग दल बैन को बजरंग बली से जोड़ने का मिसाईल बैकफायर करता हुआ दिख रहा है। चुनाव नतीजे आने पर परिणाम में कांग्रेस बीजेपी से काफ़ी आगे खड़ी नज़र आयेगी। सीट शेयरिंग में कांग्रेस बीजेपी से डेढ़ से दोगुना सीट अधिक हासिल करेगी।

कर्नाटक और एक वर्ष पहले उप्र में हुए चुनाव के परिणाम भविष्य की राजनीति की आधारशिला रखेंगे। जहां कांग्रेस कार्यकर्ता विहीन है वहां भले ही क्षेत्रीय दल राहत की सांस ले लें लेकिन कांग्रेस की उपस्थिति होते ही क्षेत्रीय दल मुरझाने लगेंगे। कर्नाटक में कहीं जेडीएस का वही हाल न हो जाए जो उप्र में 2022 के विधान सभा चुनाव में बीएसपी का हुआ था। फिलहाल जेडीएस का इतना पतन होता नही दिख रहा कि उसे बीएसपी की श्रेणी में अभी से खड़ा किया जा सके। चुनाव नतीजे आने के बाद जेडीएस 2018 में हासिल सीट की एक तिहाई से अधिक सीट जीत पायेगी संभावना कम ही है।

पंजाब में जब 2022 में विधान सभा चुनाव होने वाले थे मोदी जी को बाई रोड चलने पर उनकी जान को खतरा प्रकट हो गया था लेकिन अब चुनावी प्रचार में 15-20 किमी का रोड़ शो करने पर उनके प्राण पर आघात होने का कोई खतरा ही उपस्थित नही हो रहा है क्यों? क्या रोड शो के दौरान बजरंगबली उनके कवच के रूप में खड़े रहते हैं? कर्नाटक की जनता मोदी के आडंबर में फंसने को तैयार दिखी तो नही है। मोदी जी के मन में शायद ईश्वर के प्रति कोई आस्था है ही नही। अन्यथा वह यह बात कैसे भूल सकते हैं कि बजरंग बली का जयघोष वही करता है जो पूरी तरह से भयाक्रांत है। भूत पिशाच निकट नही आवे, महावीर जब नाम सुनावे। मोदी जी के बजरंग बली वाले जयघोष ने कर्नाटक की जनता के कान खड़े कर दिए कि मोदी जी कर्नाटक वासियों को भूत पिशाच कह रहे हैं। कर्नाटक वासियों ने शायद उनकी इस धृष्टता के लिए सत्ता से दूर कर दण्ड मुकम्मल कर दिया है। सत्ता का नशा जनादेश की उपेक्षा कर सज़ा से बच जायेगा वह भी कर्नाटक ऐसे राज्य में .

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