कविता
”काम करो”
काम करो, कुछ काम करो ।।
आराम नाम कि नींद को।
अब हराम करो, उठो।
युवाओं जागकर कुछ काम करो।
काम करो, कुछ काम करो ।।
बित रहा था, जीवन तेरा।
अंधियारो की घाटी में।
अब जागकर तुम होश में आओं।
काम करो, कुछ काम करो ।।
सपने तेरे हो बड़े-बड़े।
गाड़ी बगंला कारो के।
समय भी तेरा साथ देंगा।
जब निकल पड़ेगा राहो पर।
काम करो, कुछ काम करो ।।
कठिनाई तेरे जीवन में आई ।
मंहगाई शहर भर छाई।
भाग दोड़ की जिन्दगानी ।
हम सब की यही कहानी ।
काम करो, कुछ काम करो ।।
बवंडर बनकर निकल पड़ो।
रोक सकेगा कौन तुम्हे ।
हारी बाजी, जीत जाओंगे।
समय लगा दो काम पर।
काम करो, कुछ काम करो ।।
रूकना अब संकट कारी।
थकना हुआ, भंयकर भारी।
रात करो या दिन करो।
अब तो कुछ काम करो।
काम करो, कुछ काम करो।
हिंमाशु हाड़गे
भटेरा चैकी वार्ड नं. 02 बालाघाट (म.प्र.)