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नई संसद का उद्घाटन 28/5/2023 राष्ट्रपति का चीरहरण
आजादी के 75 वर्ष का जश्न बना अमृत काल में जी रहे देश में नये संसद-भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री द्वारा 28 मई 2023 को करने का निर्धारण लोकसभा स्पीकर ने आमंत्रण देकर किया हैं।पांचवी की किताब में लिखा हमें पता नहीं की गणतंत्र में सर्वोच्य पद राष्ट्रपति का होता हैं व उपराष्ट्रपति राज्यसभा के भी अध्यक्ष होते हैं जो लोकसभा स्पीकर से बडा संवैधानिक पद हैं व राज्यसभा को लोकसभा का ऊपरी सदन भी कहते हैं जो संसद का एक अभिन्न अंग हैं।
यदि विज्ञान के सिद्धान्तों के आधार पर लोकतंत्र, संविधान व व्यवस्था के प्रकाश में व्याख्या करे तो यह राष्ट्रपति “द्रौपदी” का चीरहरण लगता हैं। यहां चीरहरण का तात्पर्य ईज्जत, मर्यादा, नैतिकता, संविधान, सत्ता, व्यवस्था, लोकतंत्र, धार्मिक सभ्यता एवं संस्कृति पर कालिख पोतना हैं। “द्रौपदी” शब्द भारतीय इतिहास के विकास श्रृंखला की वो नारी/स्त्रीलिंग शब्द हैं जिससे सत्ता के खुले दरबार वाली घटना नें चीरहरण को जोड़ करोडों जिन्दगीयों को मौत के आगोश में धकेल काल के कपाल पर विनाश की महागाथा खींची थी। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति की कोई निजी जिन्दगी नहीं होती इसलिए “द्रौपदी” नाम को हटा दे तब भी यह जनता की लोकतांत्रिक सरकार का चीरहरण ही कहलायेगी।
आजादी के बाद यह पहली घटना होगी जब सरकारी खजाने से बनी ऐतिहासिक ईमारत जो संविधान से जुडने जा रही हैं उसका उद्घाटन होगा न कि राष्ट्र को समर्पित किया जायेगा। उद्घाटन यानि शिलान्यस से पर्दे का अनावरण या प्रवेश द्वार पर रिबिन काटना होता हैं जबकि राष्ट्र को समर्पित करने का अर्थ पहले राष्ट्रीय गीत जन-गण-मन गाकर राष्ट्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को याद कर उसके लिए अपने अमूल्य जीवन को बलिदान व न्यौछावर करने वाले सभी वीर, वीरांगनाओ, सपूतों को मन में याद रख राष्ट्रीय ध्वज फहराना होता हैं ।
राष्ट्र को समर्पित करने के बाद उस स्थल पर आम लोगों के जाने पर स्थाई पाबन्दी लगाना, टिकिट के नाम पर पैसा वसूलना, सुविधा के नाम पर प्राइवेट कम्पनी को स्थाई अधिकार में देना वर्जित हो जाता हैं । इसके साथ फोटो, विडियो, शूटिंग कर व्यवसाहिक कामों में इस्तेमाल करना कानूनी अपराध कहलाता हैं। नई संसद के ऊपर राष्ट्र चिह्न अशोक स्तम्भ व तिरंगा लगा हैं इसलिए संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत राष्ट्र को समर्पण ही हो सकता हैं उद्घाटन तो किसी भी सूरते हाल में नहीं….
आजादी के लिए तन-मन-धन न्यौछावर कर देने वालों व संविधान निर्माताओं द्वारा इतना स्पष्ट होने के पश्चात् भी उद्घाटन करने के फैसले में व्यक्तिवाद स्वार्थ, लालच, अहंकार नजर आता हैं जो प्रधानमंत्री के संवैधानिक पद को सर्वशक्तिमान व सबसे बड़ा दिखाने की घिनौनी, कुंठित सोच को थोप कर पर्दें के पीछे सत्ता को हथियाने की गन्दी राजनैतिक फांसे फेंक तानाशाही वाली मानसिक दिवालीयेपन की मंशा से सबकुछ एकाधिकार में रखने का झंझाल बुन रहा हैं।
प्रधानमंत्री-पद वाले व्यक्ति के सम्बोधन से पहले राष्ट्रीय गीत बजाना व उसके साथ लहराता हुआ तिरंगा रखना असंवैधानिक हैं। इसे राष्ट्रपति को मौलिक एकाधिकार में दे रखा हैं | 500 व 1000 रूपये के मुद्रा की नोटबंधी की घोषणा राष्ट्रीय-सम्बोधन के माध्यम से करने की अनुमति प्रधानमंत्री को पहले राष्ट्रपति से लेनी पडी तब भी राष्ट्रीय गीत नहीं बजाया गया। प्रधानमंत्री संसद को लोकतंत्र का मन्दिर कहते हैं यदि उसके नये भवन के उद्घाटन में संविधान संरक्षक को न बुलाया तो उसे राष्ट्रपति पद का चीरहरण ही कहां जायेगा । यदि राष्ट्रपति को बुलाया जाता हैं और व उपराष्ट्रपति,मुख्य न्यायाधीश,लोकसभा स्पीकर के साथ पद की गरीमाओं को खूटी पर टांग पीछे खड़े रहते हैं और प्रधानमंत्री-पद वाला व्यक्ति उद्घाटन करे तो उसे चीरहरण के अतिरिक्त क्या कहां जा सकता हैं । नये संसद-भवन की परिकल्पना प्रधानमंत्री पद की हैं तो राष्ट्र नें उन्हें नीव आधारशिला रखने का गौरव पहले ही आदर व सम्मान के साथ दिया था |
इस बार भगवान श्री कृष्ण “द्रौपदी” के चीरहरण में नारी लज्जा, धर्म, संस्कृति को बचाने नहीं आयेंगे क्योंकि उन्होंने इस बार पहले ही इनके पति व बच्चों को अपने पास बुला पति परमेश्वर की आज्ञा व पुत्रमोह के अंधेपन से मुक्त कर दिया | इसके साथ तीनों सेनाओं का प्रमुख बनाकर संविधान संरक्षक के सर्वोच्च पद पर बैठा सत्ता के डर, अधिकार व दमन की विवशता एवं मजबूरी से अजेय बना रखा हैं | यदि वह स्वयं ही अन्जान बन मौन के रूप में चीरहरण को सहमति दे तो फिर चीरहरण शब्द ही अपनी मर्यादा खो देगा |
यह तो “समय” तय करेगा कि राष्ट्रभक्त, नारी को शक्ति के रूप में पूजने वाले, हर कार्यश्रेत्र में आज के महारथी, भारत रत्नों व पद्म भूषण, पद्म विभूषणों जैसे राष्ट्रीय अवार्डों से राष्ट्रपति द्वारा अलंकृत, भारत-माता के सपूत, अपने-अपने धर्मों एवं गुरूओं में आस्था व विश्वास रखने वाले लोग, राम व श्री कृष्ण को पूजने व आदर्श मानने वाले, आजाद भारत के देशवासी व संविधान के अनुसार सरकार के मालिक इस “चीरहरण” को रोकते हैं या स्वयं ही नये संसद-भवन का गेट खोल अपने नौकरों/सेवकों/प्रतिनिधियों को जनसेवा करने हेतु भव्य, आलीशान, सभी भौतिक एवं आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित एवं हाई तकनीक व सुरक्षा से लैस भवन स्वयं ही इनको देकर राष्ट्रगीत गाकर अपनी सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र के शहीदों को नमन करते हैं या पहले की तरह संजय रूपी टेलीविजन पर लाईव प्रसारण देख अन्धें धृष्टराष्ट्र की तरह मूकदर्शक बन लोकतंत्र के रूप में अपनी ही सरकार व उसके संरक्षक राष्ट्रपति के चीरहरण को देख गौरवान्वित महसूस होते हैं और फोटो खींच व वीडियो बना अपने बच्चों के लिए प्रमाण बनायेगी की वो “चीरहरण” के साक्षी व भागीदार थे |
इस मौके पर भारतीय सशस्त्र सेना तो स्थिर रहकर जनता के साथ अपनी राष्ट्रभक्ति एवं उसके लिए बलिदान की खाई शपथ को ही परवान चलायेंगी क्योंकि राष्ट्रपति उनकी प्रमुख हैं व उनकी ईज्जत, मर्यादा की रक्षा करना उसका धर्म, कर्तव्य व सच्ची राष्ट्रभक्ति हैं | पुलिस तो स्वयं अपने सिर पर टोपी पर लगे चार मुंख वाले शेर के राष्ट्र-चिन्ह से दबकर स्टैचू बन जायेगी क्योंकि यहां देश के लिए जान न्यौछावर करने वाले उनके सभी साथीयों को राष्ट्रगीत के साथ याद व नमन कर राष्ट्रीय सलामी के साथ तीरंगे को फहराया जा रहा होगा |
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