नेताओं को डबल पेंशन, सरकारी कर्मचारियों को नो पेंशन
आज के दौर में सरकारी नौकरी का पहले जैसा महत्व नहीं रहा। पहले लोग सरकारी नौकरी इसलिए लेना चाहते थे क्योंकि सरकारी नौकरी की पॉलिसी प्राइवेट नौकरियों की पॉलिसी से बहुत ही अच्छी आरामदायक रहती थी, लेकिन मौजूदा दौर में सरकारी नौकरियों की पॉलिसी अब इतनी खास नहीं रही इससे अच्छी पॉलिसी प्राइवेट नौकरियों में मिलने लगी है। इसका मुख्य कारण यह हो सकता है कि सरकारी कर्मचारियों को उनका हक पुरानी पेंशन उन्हें नहीं मिल रही है, नई पेंशन के रूप में उन्हें सिर्फ 800 से 1500 रूपए प्रति माह मिल रहा हैं। इस नई पेंशन से महंगाई के जमाने में ठीक से दवाइयां भी नसीब नहीं होगी। वहीं अब बात करें जनप्रतिनिधियों की जो अपने आप को जनसेवक कहते हैं यह बिना किसी परीक्षा को पास किए लोगों के मत से सरकारी तंत्र में आ जाते हैं और लोगों के टैक्स के बदौलत आजीवन अपना जीवन यापन कर रहे हैं, चाहे वह 1 दिन का भी विधायक या मंत्री क्यों न हो। आज के लेख में पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर बात करेंगे। हम सभी को पता है कि 1 अप्रैल 2004 से पेंशन बंद हो गई है, नई पेंशन प्रणाली में बीमा प्रीमियम की तरह सरकारी कर्मचारियों को खुद अंशदान करना पड़ता है। जितना ज्यादा अंशदान, रिटायरमेंट पर उतनी ज्यादा पेंशन। लंबे समय से पुरानी पेंशन को बहाल करने की मांग उठती रही है, अब तो पुरानी पेंशन की बहाली को लेकर विपक्ष ने भी मुद्दा बना लिया है। आम जनता में यही धारणा बनी है कि चुने हुए नेताजी खुद अपने लिए वेतन-भत्ते बढ़ा लेते हैं, पर कर्मचारियों की मांगों को अनसुना कर दिया जाता है। अक्सर सवाल उठते हैं कि आमतौर पर समृद्ध बैकग्राउंड से आने वाले जनप्रतिनिधियों को क्या आजीवन पेंशन देना ठीक है? अगर हां, तो 60 साल की उम्र तक अपना जीवन खपाने वाले सरकारी कर्मचारियों को पेंशन क्यों नहीं? सांसद-विधायकों और आम लोगों में अंतर का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कोई एक दिन के लिए भी सांसद बन जाए तो उसकी लॉटरी लग जाती है, उसे जीवनभर 25 हजार रुपये की पेंशन मिलती है। वैसे नौकरी प्राइवेट हो या सरकारी सैलरी का आकर्षण सबमें होता है और लोग ज्यादा पैसे के लिए एक से दूसरी कंपनी में स्विच भी करते हैं। पर नेताओं की बात अलग है। वे मिल-फैक्ट्री या कंपनी के कर्मचारी नहीं होते हैं। वे जनसेवा की दुहाई देकर सार्वजनिक क्षेत्र में जीवन बिताने राजनीति में आते हैं। बात करते है पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री से लेकर कई वामपंथी नेताओं की तो, ये नेता जब रिटायर हुए उनके पास कमाई गई कोई दौलत नहीं थी। अकाउंट भी खाली था क्योंकि वे सिर्फ नैरेटिव सेट करने के लिए जनसेवा नहीं करते थे। उन्होंने सच में अपनी आमदनी को जनसेवा के लिए खर्च कर दिया था। आज के समय में चुनाव प्रचार में होने वाले बेतहाशा खर्च से सोचा भी नहीं जा सकता कि कोई गरीब इंसान चुनाव भी लड़ सकता है। हां, पार्टी फंड से चुनाव लड़कर संसद या विधानसभा पहुंचने वालों की संख्या कम ही है। अधिकतर वहीं चुनाव लड़ते है जिनके पास बेतहाशा पैसा हो और गवाने के लिए कुछ भी न हो। हाल ही में राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ की सरकार में अपने प्रदेशों में पुरानी पेंशन योजना लागू करने का निर्णय लिया है हालाकि यह निर्णय केंद्र सरकार को नीचा दिखाने के उद्देश्य से भी लिया जा सकता है क्योंकि दोनों राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, लेकिन फायदा तो लोगों को मिलना ही है। वहीं पंजाब में मान की सरकार ने विधायकों की पेंशन को लेकर बड़ा फैसला लिया हैं। अब पंजाब में किसी भी विधायक को एक पेंशन ही दी जाएगी, अब तक नेताजी जितनी बार विधायक बनते थे सबके लिए अलग-अलग पेंशन मिलती थी। इन राज्यों के अलावा गुजरात राज्य एकमात्र ऐसा राज्य है जहां विधायकों को पेंशन नहीं दी जाती है। अपने देश में नियम ऐसे हैं कि अगर कोई नेता पूर्व सांसद या विधायक की पेंशन ले रहा है और फिर से मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद के वेतन के साथ ही पेंशन भी मिलती है। वहीं सांसदों और विधायकों को डबल पेंशन लेने का हक है। अगर कोई विधायक रहा हो और बाद में सांसद बन जाए तो उसे दोनों की पेंशन मिलती है। पेंशन के लिए कोई न्यूनतम समयसीमा तय नहीं है, यानी कितने भी समय के लिए नेताजी सांसद रहे हों पेंशन पाने के हकदार रहेंगे। मृत्यु होने पर भी परिवार को आधी पेंशन मिलती है। अपने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में विधायकों को पांच साल कार्यकाल के बाद ही पेंशन देने के लिए जब मांग उठी थी तो राज्य सरकार ने जवाब दिया कि विधायकों को उनकी सेवाओं के बदले में पेंशन दी जाती है। तो सरकार को सरकारी कर्मचारियों के बारे में भी सोचना चाहिए था। कर्मचारी भी कह सकते हैं कि वे जीवनभर नौकरी करते हैं, वे भी जनता की सेवा ही करते हैं तो उन्हें उनकी सेवाओं के बदले पेंशन क्यों नहीं? बहरहाल पुरानी पेंशन की बहाली का मुद्दा अब हर राज्यों में उठ गया है बस विपक्ष इस मुद्दे को लेकर जल्द बैकफुट में न आ जाए, वहीं आने वाले चुनाव में भी पुरानी पेंशन को लागू करने का सबसे बड़ा मुद्दा बनाया जायेगा।
आयुष रामटेक्कर
लांजी, बालाघाट