*आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022, जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ*
सरकार आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022, लाकर देश की जनता के साथ डर का सौदा करना चाहती है ताकि जनता सदा ही भय और दबाव में जीती रहे, और जनता अपने अधिकारों के लिए लड़ने में भयभीत रहे। काॅर्पोरेट के इशारे पर काम कर रही सरकार अपनी असफलता छिपाने के लिए इस तरीके के कानून ला रही है ताकि सरकार के खिलाफ उठने वाली आवाज़ों को अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने पर उन्हें हमेशा के लिए जेलों के अन्दर डाला जा सके और जनता के मन में यह भय पैदा किया जा सके। भारत के संविधान में प्रत्येक आरोपी को अपना बचाव करने तथा सफाई प्रस्तुत करने का अधिकार है, उसी तरह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही तथा पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर किसी आरोपी को सजा नही सुनाई जा सकने का प्रावधान है। आरोपी के भी अपने मौलिक अधिकार हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 में उल्लेख किया गया है कि मौलिक अधिकारों के खिलाफ देश में कोई कानून नही बनाया जा सकता, किन्तु केन्द्र में बैठी सरकार लगातार भारत के संविधान के खिलाफ कानून बनाती नजर आ रही है। इसका मुख्य कारण हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों की उदासीनता मुख्य तौर पर दिखाई देती है। हम भारत के लोग लोकतांत्रिक गणराज्य को मानते हैं जनता अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए अपने सांसद लोकसभा में और विधायक विधान सभा में भेजते है ताकि भारत की जनता के सम्मान पूर्वक जीवन जीने के कानून बनाये जा सकें, तथा कानून का अमल कार्यपालिका के माध्यम से कराया जा सकें, किन्तु हम इसका उल्टा देख रहे हैं। हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों की कानून बनाने में कोई रूचि दिखाई नही देती इसलिए लगातार भारत की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होते कानून बनाये जा रहे हैं। जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा तभी हो सकती है जब विपक्ष मजबूत हो और विपक्ष को पूरी तरीके से ख़त्म करने में वर्तमान सरकार ने कोई कसर नही छोड़ी।
हमारे चुने हुए सांसदों को संसदीय और संवैधानिक तरीके से अपनी बात आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पारित होने के पूर्व संसद में बहस के दौरान तार्किक तरीके से रखना था। अगर हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पढ़े होते तो कतई पुलिस को अंगुली एवं हथेली वा पैरों की छाप, फोटो, आँखों की पुतली/रेटिना, लिखावट के नमूने, हस्ताक्षर, फिजिकल व बायोलाॅजिकल नमूने लेने का अधिकार पुलिस को नही देने देते इसका पुरजोर विरोध करते। हमारे प्रतिनिधि अगर 1861 के पुलिस अधिनियम का अध्ययन करते तो उन्हें यह अवश्य पता होता कि 1861 का पुलिस अधिनियम भारत की जनता की रक्षा के लिए नही बल्कि भारत की जनता को प्रताड़ित करने के लिए बनाया गया है। *केशवानन्द भारती विरूद्ध केरल राज्य के फैसले में देश की सर्वोच्च अदालत ने संसद को सर्वोपरी नही माना है इसी फैसले में कहा गया है कि मौलिक अधिकारों के खिलाफ कोई कानून नही बनाया जा सकता।* हम भारत के लोगों ने भारत के संविधान को बनाया है उसे अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया है, हम भारत के लोगों की यह जवाबदारी है कि भारत के संविधान की रक्षा करें। *हम सभी को मिलकर मौलिक अधिकारों के खिलाफ बनाये गये आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 का पुरजोर विरोध करन होगा, ताकि किसान विरोधी कानून की तरह इस कानून को भी संसद में रद्द करने करने के लिए सरकार को मजबूर किया जा सकें।*
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*Criminal Procedure Identification Bill 2022, totally incapable of protecting the fundamental rights of the public.*
The government wants to deal with the fear with the people of the country by bringing the Criminal Procedure Recognition Bill 2022, so that the people always live under fear and pressure, and the people be afraid to fight for their rights. The government working at the behest of the corporate is bringing such laws to hide its failure so that the voices raised against the government can be put in jails forever for fighting for their rights and instilling this in the mind of the public. In the Constitution of India, every accused has the right to defend himself and to present his explanation. Similarly under the Indian Evidence Act, there is a provision that no accused can be sentenced on the basis of the action taken by the police and the evidence presented by the police. The accused also have their fundamental rights. It has been mentioned in Article 13 of the Constitution of India that no law can be made in the country against the Fundamental Rights but the government at the center is constantly seen making laws against the Constitution of India. The main reason for this is the apathy of our elected representatives. We the people of India believe in a democratic republic, the people send their MPs to the Lok Sabha and MLAs to the Legislative Assembly to represent themselves so that laws can be made to live life with dignity and the law is implemented through the executive. But we are seeing the opposite. Our elected representatives do not show any interest in making laws, so laws are being made continuously violating the fundamental rights of the people of India. The fundamental rights of the people can be protected only when the opposition is strong and the present government has left no stone unturned to eliminate the opposition completely.
Our elected MPs had to make their point of view in a parliamentary and constitutional manner during the debate in Parliament before the Criminal Procedure Recognition Bill 2022 was passed. If our elected representatives had read the Indian Evidence Act, then at all they would not have given the police the right to take fingerprints, photographs, iris / retina, handwriting samples, signatures, physical and biological samples and would have strongly opposed it. If our representatives had studied the Police Act of 1861, then they must have known that the Police Act of 1861 was made not to protect the people of India but to harass the people of India. *In the judgment of the Kesavananda Bharati versus State of Kerala, the Supreme Court has not considered the Parliament as paramount. In this decision it has been said that no law can be made against the Fundamental Rights.* We the people of India have made the Constitution of India, adopted and enacted it and it is the responsibility of the people of India to protect the Constitution of India. *We all together have to strongly oppose the Criminal Procedure Identification Bill 2022 made against the fundamental rights, so that the government can be forced to repeal this law in Parliament like the anti-farmer laws*
*Sincerely*