#फिर सांझ होने को है….
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सांझ होने को है,
मेरी खिड़की के पर्दे से,
टकरा रही है सूरज की किरणें,
उड़ता है जब हवा से परदा,
भीतर घुस जाती है किरणें,
कभी दीवाल पर अठखेलियाँ करती है,
कभी कमरे में रखी मेज पर मचलती हैं,
हर रोज यही क्रम चलता है,
जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से,
आता हो मिलने हर रोज,
ताकता हो, उसकी खिड़की पर,
पर्दा जरा सा खिसकने पर,
दिख जाती हो मेहबूब की सूरत,
पर यह क्या बादलों ने,
ढंक लिया है,सूरज को,
बंद हो गई रोशनी आनी,
जैसे किसी प्रेमिका का पिता,
प्रेमी को देखकर,
बंद कर देता है खिड़की,
पर यह बादलों का पहरा,
है कुछ देर के लिए ही,
देखो छंट गए हैं बादल,
फिर आ रही है रोशनी,
फिर उड़ रहे है पर्दे,
फिर किरणे झांक रही है घर के भीतर,
लेकिन इस बार उसकी किरणें,
आवारगी कर रही है,
वो झांक रही है,
दीवालों को, दरवाजे को,
बिस्तर में बिछी चादर को,
दरवाजे के पीछे टंगे कपड़ों को,
देखो फिर सांझ होने को है।
शिवपूजन मिश्रा
चौकी प्रभारी उकवा
जिला बालाघाट