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ब्राह्मणों के ही नहीं मानव मात्र के आराध्य हैं भगवान परशुराम,सर्व समाज मनाए भव्य प्राकट्योत्सव*

*ब्राह्मणों के ही नहीं मानव मात्र के आराध्य हैं भगवान परशुराम,सर्व समाज मनाए भव्य प्राकट्योत्सव*

भगवान परशुराम जी किसी धर्म, जाति,वर्ण या वर्ग विशेष के आराध्य नहीं वल्कि वे मानव मात्र के आराध्य हैं। सामाजिक बैमनस्यता फैलाकर सनातन धर्म व सनातन संस्कृति के वैभव को धूमिल करने के कुत्सित प्रयास के तहत् भगवान परशुराम द्वारा 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने की बात का पूर्णतः झूठा प्रचार किया गया है और आज भी किया जा रहा है। भगवान परशुराम जी ने एक युद्ध में 21 प्रजा शोषक ,धर्मांध और आतताई राजाओं का संहार किया था। सनातन विरोधी शक्तियों ने शायद इन्ही 21 दुष्ट राजाओं के संहार की घटना को विकृत कर 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन करने बाली बात में परिवर्तित कर दिया। युद्ध में मारे गए इन 21 राजाओं के नाम महाभारत में उल्लेखित हैं। भगवान परशुराम के बारे में *”दुष्ट क्षत्रम् विनाशाय”* शब्द आया है । यहां *क्षत्रम्* का अर्थ क्षत्रिय नहीं वल्कि क्षत्र या क्षत्रप है जिसका आशय राजा होता है।
भगवान परशुराम जी ने दुष्ट राजाओं का संहार कर किसी वर्ग विशेष के लिए नहीं बल्कि मानव मात्र के कल्याण हेतु सुख,शांति,समृद्धि और वैभवशाली विश्व की स्थापना की किया।
अतःसमाज का सिरमौर होने के कारण विप्रजनों का दायित्व है कि वे भगवान परशुराम जी को सिर्फ अपना नहीं बल्कि उनके लोक कल्याणकारी रूप को समाज के सम्मुख रखकर उन्हें मानव मात्र का आराध्य बनाएं और उनके प्राकट्योत्सव को लोक उत्सव बनाएं।

समाचार संकलन प्रफुल्ल कुमार चित्रीव 

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