*महान राजा भोज का इतिहास*
अल्पायु में सिंहासनारोहण के समय महान राजा भोज चारों ओर से शत्रुओं से घिरे थे। उत्तर में तुर्को से, उत्तर-पश्चिम में राजपूत सामंतों से, दक्षिण में विक्रम चालुक्य, पूर्व में युवराज कलचुरी तथा पश्चिम में भीम चालुक्य से उन्हें लोहा लेना पड़ा। उन्होंने सब को हराया। तेलंगाना के तेलप और तिरहुत के गांगेयदेव को हराने से एक मशहूर कहावत बनी- ”कहां राजा भोज, कहां गंगू तेली”
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भोज नाम से और भी राजा हुए हैं जैसे मिहिर भोज। हम यहां बात कर रहे हैं उन राजा भोज की जिन्होंने अपनी राजधानी धार को बनाया था। उनका जन्म सन् 980 में महाराजा विक्रमादित्य की नगरी उज्जैनी में हुआ। राजा भोज चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य के वंशज थे। पन्द्रह वर्ष की छोटी आयु में उनका राज्य अभिषेक मालवा के राजसिंहासन पर हुआ। प्रसिद्ध संस्कृत विद्वान डॉ. रेवा प्रसाद द्विवेदी ने प्राचीन संस्कृत साहित्य पर शोध के दौरान मलयाली भाषा में भोज की रचनाओं की खोज करने के बाद यह माना है कि राजा भोज का शासन सुदूर केरल के समुद्र तट तक था।
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ग्वालियर से मिले महान राजा भोज के स्तुति पत्र के अनुसार केदारनाथ मंदिर का राजा भोज ने 1076 से 1099 के बीच पुनर्निर्माण कराया था। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार यह मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है। इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदिशंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था। कुछ इतिहासकारों अनुसार राजा भोज परमार मालवा के ‘परमार’ अथवा ‘पवार वंश’ के नौवें यशस्वी राजा थे। उन्होंने 1018 ईस्वी से 1060 ईस्वी तक शासन किया। कुछ विद्वानों अनुसार परमार वंश ने मालवा पर सन् 1000 से 1285 तक राज किया। भोजराज इसी महाप्रतापी वंश की पांचवीं पीढ़ी में थे।
कुछ विद्वान मानते हैं कि महान राजा भोज (भोजदेव) का शासनकाल 1010 से 1053 तक रहा। राजा भोज ने अपने काल में कई मंदिर बनवाए। राजा भोज के नाम पर भोपाल के निकट भोजपुर बसा है। धार की भोजशाला का निर्माण भी उन्होंने कराया था। कहते हैं कि उन्होंने ही मध्यप्रदेश की वर्तमान राजधानी भोपाल को बसाया था जिसे पहले ‘भोजपाल’ कहा जाता था। इनके ही नाम पर भोज नाम से उपाधी देने का भी प्रचलन शुरू हुआ जो इनके ही जैसे महान कार्य करने वाले राजाओं की दी जाती थी।
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भोज के निर्माण कार्य : मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं।
राजा भोज नदियों को चैनलाइज या जोड़ने के कार्य के लिए भी पहचाने जाते हैं। आज उनके द्वारा खोदी गई नहरें और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के कंजर्व वाटर का लाभ आम लोगों को मिल रहा है। भोपाल शहर का बड़ा तालाब इसका उदाहरण है। भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था। यह सरोवर पन्द्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था, जब उसके तटबन्धों को कुछ स्थानीय शासकों ने काट दिया।
उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया। उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं।
राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ ही सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण किया। राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में ‘सरस्वतीकण्ठभरण’ नामक भवन बनवाए थे जिसमें धार में ‘सरस्वती मंदिर’ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। एक अंग्रेज अधिकारी सीई लुआर्ड ने 1908 के गजट में धार के सरस्वती मंदिर का नाम ‘भोजशाला’ लिखा था। पहले इस मंदिर में मां वाग्देवी की मूर्ति होती थी। मुगलकाल में मंदिर परिसर में मस्जिद बना देने के कारण यह मूर्ति अब ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी है।
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महमूद गजनवी से लिया बदला :
गुजरात में जब महमूद गजनवी (971-1030 ई.) ने सोमनाथ का ध्वंस किया तो इतिहासकार ई. लेनपूल के अनुसार यह दु:खद समाचार शैव भक्त राजा भोज तक पहुंचने में कुछ सप्ताह लग गए। तुर्की लेखक गरदिजी के अनुसार उन्होंने इस घटना से क्षुब्द होकर सन् 1026 में गजनवी पर हमला किया और वह क्रूर हमलावर सिंध के रेगिस्तान में भाग गया।
तब राजा भोज ने हिंदू राजाओं की संयुक्त सेना एकत्रित करके गजनवी के पुत्र सालार मसूद को बहराइच के पास एक मास के युद्ध में मारकर सोमनाथ का बदला लिया और फिर 1026-1054 की अवधि के बीच भोपाल से 32 किमी पर स्थित भोजपुर शिव मंदिर का निर्माण करके मालवा में सोमनाथ की स्थापना कर दी। विख्यात पुराविद् अनंत वामन वाकणकर ने अपनी पुस्तक ‘द ग्लोरी ऑफ द परमाराज आफ मालवा’ में ‘कोदंड काव्य’ के आधार पर तुरूष्को (तुर्को) पर भोजराज की विजय की पुष्टि की है। यही कारण था कि बाद के काल में मालवा पर भी मुस्लिम आक्रांताओं का लगातार आक्रमण होता रहा और खासकर धार एवं भोपाल को योजनाबद्ध निशाने पर लिया गया।
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राजा भोज का परिचय : परमारवंशीय राजाओं ने मालवा के एक नगर धार को अपनी राजधानी बनाकर 8वीं शताब्दी से लेकर 14वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक राज्य किया था। उनके ही वंश में हुए परमार वंश के सबसे महान अधिपति महाराजा भोज ने धार में 1000 ईसवीं से 1055 ईसवीं तक शासन किया।
महाराजा भोज से संबंधित 1010 से 1055 ई. तक के कई ताम्रपत्र, शिलालेख और मूर्तिलेख प्राप्त होते हैं। भोज के साम्राज्य के अंतर्गत मालवा, कोंकण, खानदेश, भिलसा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़ एवं गोदावरी घाटी का कुछ भाग शामिल था। उन्होंने उज्जैन की जगह अपनी नई राजधानी धार को बनाया। राजा भोज को उनके कार्यों के कारण उन्हें ‘नवसाहसाक’ अर्थात् ‘नव विक्रमादित्य’ भी कहा जाता था। महाराजा भोज इतिहास प्रसिद्ध मुंजराज के भतीजे व सिंधुराज के पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम लीलावती था।
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ग्रंथ रचना : राजा भोज खुद एक विद्वान होने के साथ-साथ काव्यशास्त्र और व्याकरण के बड़े जानकार थे और उन्होंने बहुत सारी किताबें लिखी थीं। मान्यता अनुसार भोज ने 64 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थीं तथा उन्होंने सभी विषयों पर 84 ग्रंथ लिखे जिसमें धर्म, ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, वास्तुशिल्प, विज्ञान, कला, नाट्यशास्त्र, संगीत, योगशास्त्र, दर्शन, राजनीतिशास्त्र आदि प्रमुख हैं।
उन्होंने ‘समरांगण सूत्रधार’, ‘सरस्वती कंठाभरण’, ‘सिद्वांत संग्रह’, ‘राजकार्तड’, ‘योग्यसूत्रवृत्ति’, ‘विद्या विनोद’, ‘युक्ति कल्पतरु’, ‘चारु चर्चा’, ‘आदित्य प्रताप सिद्धांत’, ‘आयुर्वेद सर्वस्व श्रृंगार प्रकाश’, ‘प्राकृत व्याकरण’, ‘कूर्मशतक’, ‘श्रृंगार मंजरी’, ‘भोजचम्पू’, ‘कृत्यकल्पतरु’, ‘तत्वप्रकाश’, ‘शब्दानुशासन’, ‘राज्मृडाड’ आदि ग्रंथों की रचना की।
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‘भोज प्रबंधनम्’ नाम से उनकी आत्मकथा है। हनुमानजी द्वारा रचित रामकथा के शिलालेख समुद्र से निकलवाकर धार नगरी में उनकी पुनर्रचना करवाई, जो हनुमान्नाष्टक के रूप में विश्वविख्यात है। तत्पश्चात उन्होंने चम्पू रामायण की रचना की, जो अपने गद्यकाव्य के लिए विख्यात है।
आईन-ए-अकबरी में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार भोज की राजसभा में 500 विद्वान थे। इन विद्वानों में नौ (नौरत्न) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महाराजा भोज ने अपने ग्रंथों में विमान बनाने की विधि का विस्तृत वर्णन किया है। इसी तरह उन्होंने नाव व बड़े जहाज बनाने की विधि का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त उन्होंने रोबोट तकनीक पर भी काम किया था।
मालवा के इस चक्रवर्ती, प्रतापी, काव्य और वास्तुशास्त्र में निपुण और विद्वान राजा, राजा भोज के जीवन और कार्यों पर विश्व की अनेक यूनिवर्सिटीज में शोध कार्य हो रहा है। इसके अलवा गौतमी पुत्र शतकर्णी, यशवर्धन, नागभट्ट और बप्पा रावल, मिहिर भोज, देवपाल, अमोघवर्ष , इंद्र द्वितीय, चोल राजा, राजेंद्र चोल, पृथ्वीराज चौहान, विक्रमादित्य vi, हरिहर राय और बुक्का राय, राणा सांगा, अकबर, श्रीकृष्णदेववर्मन, महाराणा प्रताप, गुरुगोविंद सिंह, शिवाजी महाराज, पेशवा बाजीराव और बालाजी बाजीराव, महाराजा रणजीत सिंह आदि के शासन में भी जनता खुशहाल और निर्भिक रही।
मृत्यु :
अपने शासन काल के अंतिम वर्षों में भोज परमार को पराजय का अपयश भोगना पड़ा। गुजरात के चालुक्य राजा तथा चेदि नरेश की संयुक्त सेनाओं ने लगभग 1060 ई. में भोज परमार को पराजित कर दिया। इसके बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
समाचार संकलन प्रफुल्ल कुमार चित्रीव