मोदी सरकार के लिए सत्ता ‘साधन’ नहीं बल्कि ‘साधना’ है
– गौरव सिंह पारधी ([email protected])
76वें स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर देश जब सारा देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा था, ऐसे में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में लाल किले से संबोधित करते हुए पंचप्रण का मंत्र सभी को दिया। इन पंचप्रणों में पहला प्रण- विकसित भारत है। हमें बड़े संकल्पों और संकल्प के साथ आगे बढ़ना है। दूसरा प्रण है- दासता के सभी निशान मिटा दें, तीसरा प्रण यह है कि हमें हमारी विरासत पर गर्व करना चाहिए। चौथा प्रण एकता की ताकत है। पांचवां प्रण में नागरिकों के कर्तव्य हैं, जिनमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।
देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में परिवर्तन की आँधी देखने को मिल रही है। ये परिवर्तन केवल भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में ही नहीं हुआ, बल्कि शासन संचालन व्यवस्था, शासकीय योजनाओं के निर्माण और उनके संचालन, हितग्राहियों को उनके हितलाभ के वितरण की व्यवस्था, सरकार के कार्यक्रमों और नीतियों में आमजनों का सीधा जुड़ाव स्थापित करने के साथ ही नागरिकों में देशप्रेम की भावना का संचार और भारत की पुरातन अस्मिता तथा संस्कृति पर गर्व करने की भावना के पुनर्जागरण के नये दौर का आरंभ हुआ है।
यदि हम नरेन्द्र मोदी सरकार की जनहितकारी योजनाओं और नीतियों की ही बात करें तो उन नीतियों का आधार लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और बैंक द्वारा सीधे उनके खातों में हितलाभ वितरण करने पर फोकस किया जा रहा है। ऐसे में न सिर्फ बिचौलियों का हस्तक्षेप बंद हुआ है, बल्कि भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगी है। पहले की सरकारों द्वारा मुफ्त में रेवड़ी बाँटने का चलन था, लेकिन मोदी सरकार की योजनाओं में लोगों के हुनर के अनुरूप में काम मुहैया कराने पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
एक और बड़ा परिवर्तन भारतीय राजनीति में देखने को मिला है, कि अब राजनीति में परिवारवाद पर अंकुश लगने का आरंभ हुआ है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अब ऐसे नेताओं और समाजसेवियों से फल-फूल रहा है, जिनमें अपने ग्राम/शहर/प्रदेश और देश के साथ ही समाज के कल्याण और उनके हित में कुछ सकारात्मक करने का जज़्बा हो। भारतीय राजनीति में परिवारवार पर पाबंदी को लेकर खुलकर चर्चा होने लगी है, इसका प्रमाण है कि देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री समेत बड़े पदों पर किसी परिवार विशेष की अनुशंसा या किसी बड़े राजनीतिक घराने का संबन्ध होना ज़रूरी नहीं है। एक सामान्य से सामान्य परिवार का व्यक्ति भी बड़े पद पर पहुँच सकता है, ये प्रतिमान मोदी सरकार में गढ़े गये हैं।
भारत की राजनीति में सिर्फ राजनीति करने,चुनाव लड़ने और सत्ता हासिल करने की रीति-नीति पर विराम लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने राजनीति की रीति-नीति के साथ ही सरकार की संरचना और स्वभाव में भी बदलाव लाया है। इस सरकार ने शासक नहीं, बल्कि सेवक की भूमिका दिखाई है। भाजपा सरकार ने राष्ट्र के लिए सेवा, साधना, सहयोग और समर्पण का मार्ग चुना है। उसने अपने प्रशासनिक कार्यों को अपना सामाजिक दायित्व समझकर निभाया है। एक जिम्मेदार सरकार के रूप में मोदी सरकार देश ही नहीं पूरी दुनिया में विख्यात हुई है।
आठ वर्ष पहले प्रधानमंत्री पद संभालते ही नरेन्द्र मोदी ने स्वयं को प्रधान सेवक बताया था। राजनीतिक परिदृश्य में देखें तो अन्य राजनीतिक दलों के लिए राजनीति केवल सत्ता तक पहुंचने का साधन और सत्ता सुख का साधन रहा है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लिए राजनीति एक साधना रही है और सत्ता सेवा का माध्यम। इसके कार्यकर्ता साधक के रूप में समाज और देश में लोगों के साथ खड़े रहे हैं। चाहे प्राकृतिक आपदा हो अथवा संकट का कोई अन्य क्षण, भाजपा के कार्यकर्ता लोगों की मदद हेतु आगे आते रहे हैं। फिर सत्ता में आते ही देश को सशक्त, समृद्ध और आत्मनिर्भर बनाने के लिए खुद को समर्पित करते रहे हैं। समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने के उद्देश्य के साथ सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास मूल मंत्र हो जाता है।
मोदी सरकार के प्रयासों का ही परिणाम है कि अब विपक्षी भी सत्ता की मलाई खाने की सोच से इतर अब काम करने की दृष्टि से राजनीति कर रहे हैं। यानि, भाजपा का सत्ता से साधना का मंत्र अब देश के अन्य राजनीतिक दल भी अपना रहे है, यह अपने आप में एक बड़ी घटना है। सरकार के अभियान जब जनांदोलन बन जाएं तो यह इस बात का प्रतिमान भी है कि सरकार ने लोगों की सोच में भी परिवर्तन किया है। यही कारण है कि हमारा भारत वैश्विक मंचों पर सम्मान पाता है और प्रगति पथ पर तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है।
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