*युवा इंजीनियर हर्ष मोर ने सब्जियों की खेती से 15 लाख की आय अर्जित की*
*बेरोजगार युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बना हर्ष मोर*
बालाघाट का निवासी सिविल इंजीनियर युवा हर्ष मोर आज युवाओं के लिए प्रेरणा स्त्रोत बन गया है। हर्ष से तरबूज एवं सब्जियों की खेती से ही 15 लाख रुपये की आय अर्जित कर ली है और अपनी आधुनिक कृषि से 25 लोगों को रोजगार भी दे रहा है।
हर्ष ने वर्ष 2014 में सिविल इंजीनियर की पढ़ाई पूरी कर ली है। इसके बाद पर ठेकेदारी का काम कर रहा था। लेकिन उसे लग रहा था कि वह किसी नये क्षेत्र में हाथ आजमाये। उसके पिता के दोस्त उद्यान विस्तार अधिकारी श्री हरगोविंद धुवारे ने उसे बिरसा आकर सब्जियों की खेती देखने की सलाह दी और बताया कि बिरसा क्षेत्र के पढ़े लिखे युवा सब्जियों की खेती से अच्छी खासी आय अर्जित कर रहे है। हर्ष ने बिरसा जाकर सब्जियों की खेती को देखा और तय कर लिया कि वह भी आगे बढ़ने के लिए सब्जियों की खेती को अपनायेगा।
हर्ष वर्ष 2021 में परसवाड़ा विकासखंड के ग्राम डोरा में पहली बार 06 एकड़ खेती में तरबूज, करेला, टमाटर, मिर्ची की खेती की तो उसे पहले साल में ही समझ आ गया कि इस धंधे में बड़ा मुनाफा है। वर्ष 2022 में हर्ष ने 08 एकड़ और जमीन तैयार कर उसमें तरबूज, करेला, टमाटर एवं मिर्ची की फसल लगाया है। अब हर्ष के खेत में 03 एकड़ में तरबूज, 05 एकड़ में करेला, 04 एकड़ में टमाटर एवं 02 एकड़ में मिर्ची की फसल लगी है। हर्ष ने उद्यान विभाग की योजना से अपने खेत में ड्रिप सिंचाई की भी व्यवस्था कर ली है। हर्ष ने बताया कि इस वर्ष उसने अपने एक एकड़ के खेत से 25 टन तरबूज बेच चुका है और शेष 02 एकड़ से 40 टन तरबूज निकलने का अनुमान है। करेला भी प्रति एकड़ 10 से 12 टन निकल रहा है। हर्ष को इस वर्ष अपनी खेत यसे 15 लाख रुपये की आय होने का अनुमान है।
हर्ष ने बताया कि डोरा आदिवासी बाहुल्य ग्राम है। वह अपने खेत में गांव के 25 लोगों को नियमित रूप से रोजगार दे रहा है। उसके खेत में रोजगार पाने वाले यह 25 लोग पहले पलायन कर शहरों में चले जाते थे। लेकिन अब उन्हें गांव में ही काम मिल रहा है। कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पड़ता है। हर्ष बालाघाट के अपने शहरी जीवन को छोड़कर कुद दिन डोरा में अपने खेत में ही रहता है। हर्ष ने डोरा के ग्रामीणों को दिखा दिया है कि पडती भूमि में सब्जियों की खेती कर कम समय में लखपति बना जा सकता है।
*समाचार संकलन प्रफुल्ल कुमार चित्रीव बालाघाट*