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07, फरवरी,1898 !!
*जन्मभूमि टाईम्स*
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परमपूज्य बोधिसत्व भारतरत्न बाबा साहेब
#डॉ०भीमराव_अम्बेडकर जी को महापुरुष, युग प्रवर्तक, बनाने वाली, परम् पूज्यनीया त्यागमूर्ती,समर्पित,महान शख्सियत महिलाओं के संघर्षो की मिशाल, महानायिका ,राष्ट्रमाता रमाबाई_अंबेडकर जी की जयन्ती, पर उन्हें कोटि-कोटि नमन 🙏🏻🙏🏻🌹🌼🌹
*सुरेन्द्र गजभिये*
बहुजन समाज के पढ़े लिखे लोगों जब तुम पढ़ लिखकर कुछ बन जाओ तो कुछ समय ज्ञान, पैसा, हुनर, उस समाज को देना जिस समाज से तुम आये हो !
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*आज_हम_बात_कर_रहे हैं*-
*नारी_शक्ति_की*:-
आओ जाने ऐसी नारी शक्ति को. जिनके त्याग समर्पण समाज के प्रति निष्ठा की बदौलत बहुजन समाज, सर्वजन समाज, की नारीशक्ति को भारत में सम्मान से जीने का अधिकार मिला ।वो है परम पूज्यनीया त्यागभावना की मूर्ति माता रमाबाई अंबेडकर जी :-।
हमारा फर्ज है उनको जानने का सम्मानित साथियो आओ इस लेख केमाध्यम से जानें :-
साथियो माता रमाबाई अंबेडकर जी आज इस दुनिया में नहीं हैं.! लेकिन उनके विचार और संघर्षो की गाथा आज भी जिंदा है, उनको मानने और जानने वालों की तादाद बहुत तेज़ी से बढ़ रही है! साथियो माता रमाबाई अंबेडकर जी त्याग समर्पण साक्षात इंसानियत की मूर्ति थीं !
जालिमों से लड़ती भीम की रमाबाई थी!
मजलूमों को बढ़ के जो, आंचल उढ़ाई थीं,
एक तरफ फूले सावित्री थे साथ लड़े, भीम साथ वैसे मातो रमाई थी..!!
बोधिसत्व भारत रत्न बाबा साहेब डॉ.
भीमराव अम्बेडकर जी को महापुरुष, युग प्रवर्तक बनाने वाली, परम पूज्यनीय त्याग समर्पण महान शख्शियत की प्रतीक महिलाओं के संघर्षो की मिशाल महानायिका राष्ट्रमाता रमाबाई अंबेडकर जी थीं ! परमपूज्य बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी को विश्वविख्यात महापुरुष बनाने में माता रमाबाई का ही साथ था..!!
आज हमारी महिलाओं ( चाहे वे किसी भी धर्म या जाति समुदाय से हों ) को माता रमाबाई अंबेडकर जी पर गर्व होना चाहिए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने बाबा साहेब का मनोबल बढ़ाये रखा और उनके हर फैसले में उनका साथ देती रहीं। खुद अपना जीवन घोर कष्ट् मे बिताया और बाबा साहेब की मदद करती रहीं !
*जिसको जवानी में* *चमचागीरी की लत लग* *जाये तो उसकी* *सारी उम्र दलाली में गुजर* *जाती है*:- आज अगर भारत की महिलाएं आज़ाद हैं, समता समानता के अधिकार मिले हैं तो उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ माता रमाबाई अम्बेडकर जी को जाता है! हमारा फर्ज है उनको जानने का उनके त्याग समर्पण की भावना को पहचानने का माता रमाबाई अंबेडकर जी के योगदान को झुठला नहीं सकता है, समाज लोग आज भी उन्हें ऐसे मुक्तिदाता के रूप में याद करते हैं शोषित समाज के आत्मसम्मान तथा हित के लिए अंतिम सांस तक लड़ीं और हर कदम पर बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का साथ दिया ..!!
माँ रमाई बाबा साहेब अंबेडकर जी और रमाबाई अंबेडकर जी को हम केवल इसी बात से जान सकते हैं.
कि, वे एक महान वकील होने के बाद भी अपने पुत्र गंगाधर की म्रत्यु पर जेब मे इतने पैसे नहीं थे कि अपने बेटे के लिए कफन खरीद सकें, कफन के लिए माता रमाबाई अम्बेडकर जी ने अपनी साड़ी में से टुकड़ा फाड़ कर दिया !
*शत् शत् नमन*
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धन्य है वो माँ जिसने माँ रमाई जैसी बेटी को जन्म दिया जिसने अपने त्याग समर्पण से बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी को महान बना दिया ! सम्मानित साथियो इतने बड़े संघर्षों की बदौलत सर्व समाज की महिलाएं और बहुसख्यक समाज सम्मान के साथ जी रहे हैं ..!!
जय बहुसख्यक समाज ..
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आज भी करोड़ों ऐसे लोग जो बाबा साहेब अंबेडकर
जी, माता रमाबाई अंबेडकर जी के संघर्षो की बदौलत कमाई गई रोटी को मुफ्त में बड़े चाव और मजे से खा रहे हैं। ऐसे लोगों को इस बात का अंदाजा भी नहीं है। कि उन्हें ताकत, पैसा, इज्जत, मान – सम्मान मिला है। वो उनकी बुद्धि और होशियारी का नहीं है। परमपूज्य डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी के संघर्षो की बदौलतहै.!
बाबा साहेब अम्बेडकर जी और माता रमाबाई अम्बेडकर जी को जो करना था समाज के प्रति वो कर गये, लेकिन हमें और हमारे समाज के लोगों को करना है वो हम नहीं कर रहें हैं!
प्रत्येक महापुरुष की सफलता के पीछे उसकी जीवन संगिनी का बहुत बड़ा हाथ होता है..!!
जीवन संगिनी का त्याग और सहयोग अगर न हो तो शायद, वह व्यक्ति, महापुरुष ही नहीं बन पाता ! आई साहेब रमाबाई अंबेडकर इसीतरह के त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति थीं ! अक्सर महापुरुष की दमक के सामने उसका घर-परिवार और जीवन संगिनी सब पीछे छूट
जाते हैं, इतिहास लिखने वालों की नजर महापुरुष पर केन्द्रित होती है! यही कारण है कि माता रमाबाई अंबेडकर जी के बारे में ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है !
*माता रमाबाई अंबेडकर* *जी का* *जीवन_परिचय*
माता रमाबाई जी का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था..!!
उनके पिता भिकु धुत्रे (वलंगकर) व माता रुक्मिणी इनके साथ रमाबाई दाभोल के पास वंणदगांव में नदी किनारे महारपुरा बस्ती में रहती थी।
उन्हे ३ बहन व एक भाई – शंकर था। रमाबाईकी बडी बहन दापोली में रहती थी !
रमाई के बचपन का नाम रामी था. रामी के माता – पिता का देहांत बचपन में ही हो गया था.। रामी की दो बहने और एक भाई था !
भाई का नाम शंकर था. बचपन में ही माता – पिता कीम्रत्युहो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन अपने मामा और चाचा के साथ मुम्बई रहने लगे थे..!!
रामी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में सुबेदार रामजी सकपाल जी के सुपुत्र डॉ. भीमराव अंबेडकर जी से सन 1906 में हुआ था. डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी की उम्र उस समय 14 वर्ष थी. तब, वह 5 वी कक्षा में पढ़ रहे थे.शादी
के बाद रामी का नाम (माता) रमाबाई अम्बेडकर हो गया था !
माता रमाबाई अम्बेडकर ने यह कठिन समय भी बिना किसी गिला शिकवा – शिकायत के बड़ी आसानी से हंसते हंसते बिता लिया !
बाबा साहब अम्बेडकर जी प्रेम से माता रमाबाई को “रमो” कहकर पुकारा करते थे..!!
दिसंबर 1940 में बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने “थॉट्स ऑफ पाकिस्तान” पुस्त्तक लिखी यह पुस्त्तक उन्होंने अपनी पत्नी “रमो” को ही भेंट की !
*भेंट के शब्द इस प्रकार थे :-
मैं यह पुस्तक “रमो” को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदव्रत्ति, त्याग समर्पण की भावना ,सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में, अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई सहायक न था, सहनशीलता और सहमति दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूँ..!!
“उपरोतत शब्दों से स्पष्ट् है कि माता रमाई ने बाबा साहेब जी का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ दिया और बाबा साहब के दिल में उनके लिए कितना सत्कार और प्रेम था ! बाबा साहेब भी ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे, जिन्हें रमाबाई जैसी बहुत ही नेक जीवन साथी
मिलीं !
माता रमाई अपने पति के प्रयत्न से कुछ लिखना पढ़ना भी सीख गई थी. साधारणत: महापुरुषों के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें जीवन साथी बहुत ही साधारण और अच्छे मिलते रहे!
माता रमाबाई कर्मठता की मूर्ति थीं! वह अपने पति के जनहितकारी कार्यों में यथायोग्य उनका साथ देती थी ! सन 1927 में महाड़ सत्याग्रह की जो योजना बनी थी, जिसका नेतृत्व बाबा साहेब अम्बेडकर जी को करना था ! इस सत्याग्रह आंदोलन में महिलायें भी जाने को थी ! बाबा साहेब जी ने रमाबाई से कहा “उन महिलाओं का ने्तत्व तुम्हें करना चाहिए ! तब माता रमाबाई अम्बेडकर जी ने कहा “मै आऊंगी ,लेकिन सत्याग्रहियों के लिए भोजन की व्यवस्था करूंगी !
बाबा साहेब जी ने हंस कर कहा ,
“कि कम से कम दस हजार लोग होगें, जिनकी भोजन की व्यवस्था करनी होगी !
रमाबाई का यह उत्तर था,”चाहे जितने भी लोग हों इसकी
चिंता नहीं!
दिन-रात पाकशाला में रहूंगी और सबको रोटी बनाकर खिलाउंगी “। माता रमाबाई अम्बेडकर जी का यह साहसिक उत्तर सुनकर बाबा साहेब जी को बहुत संतोष हुआ !
माता रमाबाई ने 5 संतानों को जन्म दिया :-
1-यशवंतराव
2- गंगाधर
3-रमेश
4- इंदू
5- राज रत्न
*गरीबी किसी को ना* *सताए* !
धन अभाव के कारण जब भोजन ही भरपेट नहींमिलता था !
तब दवा के लिए पैसे कहा से आते इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि यशवंतराव के अलावा सभी बच्चे अकाल ही काल कलवित हो गए।
दूसरे पुत्र गंगाधर के निधन की दर्द भरी कहानी डॉ. अंबेडकर ने इस प्रकार बतलाई थी :-
दसूरा लड़का गंगाधर हुआ !
जो देखने में बहुत सुंदर था !
वह अचानक बीमार हो गया दवा के लिए पैसा ना था !
उसकी बीमारी से तो एक बार मेरा मन भी डावांडोल
हो गया कि में सरकारी नौकरी लूं !
फिर मुझे विचार आया कि अगर मैने नौकरी कर ली तो उन करोड़ो अछूतों का क्या होगा ,जो गंगाधर से ज्यादा बीमार हैं ।ठीक प्रकार से इलाज ना होने के कारण वह नन्हा सा बच्चा ढाई साल की आयु में चल बसा ! गमी में लोग आए ।बच्चे के म्रत शरीर को ढकने के लिए नया कपड़ा लाने के लिए पैसे मांगे ।लेकिन मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि कफन खरीद सकूं ..!!
अंत में प्यारी पत्नी “रामो” ने अपनी साड़ी में से एक टुकड़ा फाड़ कर दिया उसी में तन ढक कर उसे श्मशान पर लोग लेकर गए और दफना कर आये !
ऐसी थी मेरी आर्थिक स्थिती ।
पांचवा बच्चा राज रत्न बहुत प्यारा था.!
रमाबाई ने उसकी देख रेख में कोई कमी नहीं आने दी ! अचानक जुलाई 1926 में उसे डबलनिमोनियां हो गया। काफी इलाज करने पर भी 19 जुलाई 1926 को दोनों को बिलखते छोड़।वह भी चल बसा माता रमाबाई को इससे बहुत सदमा पहुंचा और वह बीमार रहने लगी ।धीरे – धीरे पुत्र शोक कम हुआ तो बाबा साहब भीमराव अंबेडकर महाड सत्याग्रह में जुट गये! महाड में विरोधियों ने षडयंत्र कर उन्हें मार डालने की योजना बनाई ।यह सुनकर माता रमाबाई ने महाड़ सत्याग्रह में अपने पति के साथ रहने की अभिलाषा व्यक्त की !
जहां इतनी गरीबी का जीवन जी रही थीं..!!
वहीं आत्मसम्मान भी उनमें कूट – कूट कर भरा था !
एक दिन बाबा साहेब आंबेडकर जी कॉलेज में पढ़ाने के लिए जाते समय रमाबाई को खर्च के लिये
पैसा देना भूल गए ! रात को जब वापस लौटे तो देखा कि कमरे में दिया नहीं जल रहा है कमरे में
अंधेरा देख बाबा साहब ने पूछा रामू आज दिया क्यों नहीं जलाया” ?
जाते समय आप पैसा देना भूल गये थे, रमाबाई ने धीरे से कहा !
बाबा साहब ने पुनःकहा पड़ोस मे किसी से मिट्टी का तेल और दिया सलाई की तीली मांगकर कमरे में कम से कम दिया तो जला देती ! माता रमाबाई ने उत्तर दिया किसी से मांग कर गुजारा करना में अच्छा नहीं मानती !
अगर ऐसा होता तो आप भी सरकारी नौकरी करके सबको सुखी बना सकते थे!
मेरा भी दृढ़ निश्चय कुछ और पड़ोसियों से मांग करजीने की बजाय भूखी रहना ज्यादा पसंद करती हूँ..!!
मेरा भी स्वाभिमानपूर्ण जीवन है! बाबा साहेब अंबेडकर जी ने अपनी लेखनी से दर्जनों ग्रंथों की रचना की ! अपने कठिन परिश्रम औरदृढ़ संकल्प से सम्रद्धि संपन्न महापुरुष बने! बंबई के दादर मोहल्ले में उन्होंने राजग्रह नामक विशाल भवन का निर्माण करवाया !
अब माता रमाबाई परेल से राजग्रह आ गई !
लेकिन चिंता और शोक से उनका शरीर जर्जर हो गया था वह कभी ठीक न हो सका !
27 मई 1935 को उन पर शोक और दु:ख का पर्वत ही टूट पड़ा ! उसदिन न्रशस म्रत्यु ने उनसे उनकीपत्नी रमाबाई को छीन लिया।
बीस हजार से अधिक लोग माता रमाबाई के परिनिर्वाण में शामिल हुए थे..!!
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*बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी ने कहा है जिस समाज का इतिहास नहीं होता, वह समाज कभी भी शासक नहीं बन पाता*… क्योंकि इतिहास से प्रेरणा मिलती है, प्रेरणा से जागृति आती है, जागृति से सोच बनती है, सोच से ताकत बनती है, ताकत से शक्ति बनती है और शक्ति से शासक बनता है ”
जिन पन्नों से बहुजन समाज का सम्बन्ध है।
जो पन्ने गुमनामी के अंधेरों में कहीं खो गए, और उन पन्नों पर धूल जम गई है, उन पन्नों से धूल हटाने की कोशिश कर रहा हूँ। इस मुहिम में आप सभी मेरा साथ दे सकते हैं !
*पता नहीं क्यूं बहुसख्यक समाज के महापुरुषों के बारे कुछ भी लिखने या प्रकाशित करते समय “भारतीय जातिवादी मीडिया” की कलम से स्याही सूख जाती है ?*
इतिहासकारों की बड़ी विडम्बना ये रही है, कि उन्होंने बहुजन नायकों के योगदान को इतिहास में जगह नहीं दी
इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत भावना से ग्रस्त होना एक सबसे बड़ा कारण है, इसी तरह के तमाम ऐसे बहुजन नायक हैं, जिनका योगदान कहीं दर्ज न हो पाने से वो इतिहास के पन्नों में गुम हो गए,,,,,,
*जय* ✺ *भीम*”
*जय* *भारत*