# पुलिस अधिकारी की जिले में यादगार पल#
अलविदा प्यारे उकवा…..
#स्थानांतरण#
*# राष्ट्रभक्ति और जन सेवा का जज्बा लेकर चले पुलिस अधिकारी#*
उकवा बालाघाट का हिल स्टेशन….
एक तरफ जहां गर्मी बालाघाट में अपने पूरे उफ़ान पर है वही बालाघाट में उकवा ऐसी जगह है जहां सूर्य की गर्म स्वभाव वाली किरणें भी वहाँ की हसीन वादियों में पहुंचकर कुछ नरम हो जाती हैं। (जमीन से थोड़ा ऊपर होने व चारों तरफ सतपुड़ा के जंगलों से घिरा होने के कारण तापमान में थोड़ा कमी रहती है)।
5 दिवस पूर्व उकवा से थाना किरनापुर स्थानांतरण हो जाने से किरनापुर नवीन पदस्थापना में आना हुआ तब पता चला कि जहां रह रहे थे वो तो स्वर्ग था। किरनापुर ने शायद सूर्यदेव को कुछ ऐसी बात हालिया दिनों में बोल दी है जो वो गुस्से से तमतमा कर सुर्ख लाल हो गए हैं और भस्म कर देने की तैयारी में हैं।
अब तो उकवा की यादें शेष रह गई हैं। जब 15 अप्रैल को रामपायली से उकवा स्थानांतरण पर जा रहा था तो भरवेली के थोड़ा आगे से पहाड़ के करीब 25 किमी घुमावदार रास्तों और उनको टकटकी लगाकर देखते बड़े बड़े साल के वृक्ष को देखकर कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता मन गुनगुना उठा।
“सतपुड़ा के घने जंगल *
नींद मे डूबे हुए से
ऊँघते अनमने जंगल।
झाड ऊँचे और नीचे,
चुप खड़े हैं आँख मीचे,
घास चुप है, कास चुप है
मूक शाल, पलाश चुप है।
बन सके तो धँसो इनमें,
धँस न पाती हवा जिनमें,
सतपुड़ा के घने जंगल
ऊँघते अनमने जंगल।”
वैसे तो जंगल में महुआ,साज, सेमरा, बील, धावड़ा, हर्र, बहेड़ा, आँवला,सरई,सागौनऔर कई पेड़-पौधे व कई वनस्पतियाँ है लेकिन पतझड़ के मौसम में ये जंगल एकदम बेशर्म होकर नंगे हो जाते हैं,लेकिन इन्ही सब के बीच एक अच्छा संस्कारी पेड़ आंजन का दिखता है जो एकदम हरा भरा, पूरे कपड़े पहने हुए अपनी मर्यादा में रहता है।
बहरहाल जब उकवा पहुंचा तो चौकी का गेट बंद था मन में जिज्ञासा हुई कि चौकी का मेन गेट क्यों बंद है और राइफल लिए हुए संतरी तैनात है तब संतरी द्वारा बताया गया कि ये नक्सल क्षेत्र होने से सुरक्षा के लिए ऐसा किया जाता है मेरे द्वारा आदेश व पहचान पत्र दिखाने के बाद संतरी द्वारा चौकी में प्रवेश दिया गया। संतरी को निःसंदेह अपनी इस कर्तव्यपरायणता के लिए पुरस्कृत करवाना चाहिए।
चौकी की विभागीय औपचारिकता के बाद सबसे बड़ी समस्या थी गाड़ी में गृहस्थी का सामान,उसे कहाँ रखूं। एक छोटा सा बिस्तर जो सीट में मुड़ा पड़ा बिछने के लिए बेचैन था,कई छोटे छोटे झोले जो अपनी औकात से ज्यादा सामान समेटे थे एक दूसरे के ऊपर ट्रेन के लोकल डिब्बे जैसी हालत में सफर कर थक चुके थे व स्टेशन का वेट कर रहे थे।रसोई का सामान बर्तन भांडे रामपायली से गाड़ी में चलते ही सीट में बैठने के लिए एक दूसरे से खनखनाकर पूरे रास्ते लड़ चुके थे अब उकवा में गाड़ी खड़ी होने पर अन्य सवारियों के उतरने की प्रतीक्षा में बिल्कुल शांत बैठे थे।
तभी मेरा और मेरी गृहस्थी का रहनुमा बनकर आया रीवा के गुढ़ का रहने वाला आशीष पांडेय। ये वहां पहला व्यक्ति था जिसने मेरे दिल को जीत लिया।
आशीष ने चंद घंटों में उन दो कमरों को मेरे रहने लायक ठीक ठाक बना दिया। हालांकि पुलिस विभाग में क्षेत्रवाद जैसी कोई बात नहीं होती पूरा मध्य प्रदेश ही अपना है लेकिन रिमहा होने के कारण आशीष का प्रेम मुझमें कुछ ज्यादा ही रहा। रीवा के लोग बहुत ही जिज्ञासु होते हैं तथा हर मामलों के जानकार भी। आशीष की पहली पोस्टिंग ही बालाघाट हुई तब से वो 5 साल पूर्ण होने की प्रतीक्षा में है कि कब ट्रांसफर हो और घर के आसपास जाएं। उकवा में ज्यादा कार्य न होने से ज्यादा समय खाने, खेलने, पढ़ने लिखने और जिम में ही बीता लेकिन आशीष हर इवेंट में मेरे साथ छोटे भाई जैसे रहा।
1896 के आसपास उकवा में अंग्रेजो द्वारा एक कंपनी के माध्यम से मैगनीज के खनन का कार्य शुरू कराया जो अब तक 383 मीटर गहरी हो चुकी है। इसके परिसर में तमाम सुख सुविधाएं मौजूद हैं। आशीष हर रोज मैगनीज ओर इंडिया लिमिटेड (मॉयल) जो मैंगनीज की उकवा में माइंस संचालित करती है के बैडमिंटन हाल में मेरे साथ घंटो पसीने बहाने का भागीदार रहा,मुझसे अच्छा प्लयेर,अच्छा जिम की जानकारी रखने वाला एक बहुत ही अच्छा इंसान जिसकी इसी साल शादी करवानी है, लड़की न पसंद आने के कारण अभी अविवाहित इटार पांडे है।
छतरपुर जाने के दौरान आशीष के घर जबलपुर भी जाना हुआ (आशीष के पिताजी 6 वी बटालियन जबलपुर में पदस्थ हैं) एक अच्छे माता-पिता के संस्कार के कारण ही वह इतना अच्छा है। उसकी माँ के हाथ के खाने में
अपनेपन का स्वाद है रायता,कढ़ी बनाने में सिद्धहस्त। पिताजी भी सहज,सरल, सौम्य दंद-फंद से कोसों दूर। इतने कम समय में दोनों लोग मेरे प्रति खूब अनुराग रखते हैं।
आशीष के बाद अगर किसी ने मेरी सबसे ज्यादा मदद की वो हैं संजय ढाबा चलाने वाले अंकल आंटी जिन्होंने सीमित रुपयों में जायकेदार खाना खिलाया। भरपूर सलाद रोज दो तरह की अलग- अलग हरी सब्जियां। और संडे स्पेशल तो अलग ही रहा। खाते हुए न जाने कितनी आईपीएल टीमों को प्ले ऑफ के बाहर कर दिया हम लोगों ने। कुछ लोगों की चर्चा तो नाटो से लेकर यूक्रेन रसिया यूरोप के इर्द गिर्द ही घूमती ऐसा लगता था मानो युद्ध नीति के थिंक टैंकर यही बैठे हैं।
लेकिन कभी अंकल अगर शादी पार्टी में चले गए और वहां महुआ देवी चढ़ा ली तो उसकी खुमारी में 3 से 4 दिन आंटी से लड़ते झगड़ते व ढाबा में ताला ही लटक जाता तब अगल बगल वाले ढाबे वाले हम लोगों से सौतन सा व्यवहार करते,फिर अंकल को शायद हम लोगों पर दया आती और उनका काम फिर शुरू और हम लोगों की मौज।
उकवा में जिस तीसरे व्यक्ति ने मुझे प्रभावित किया वो है डॉ बी पी बिसेन, उम्र करीब 78 वर्ष परसवाड़ा,बैहर तथा मलाजखंड में करीब 45 वर्ष तक चिकित्सक के रूप में अलग अलग अस्पतालों में पदस्थ रहते लोगों की भरपूर सेवा की। एक बेटा बहू डॉक्टर व छोटे बेटे अमित भैया राजनीति से जुड़े। बिसेन जी से ज्यादा शायद ही इस क्षेत्र का अनुभव किसी को हो,उन्होंने अपने अनुभवों को जब साझा किया तथा उस क्ष्रेत्र में 25 से 30 साल पहले नक्सलवाद के चरम के जो जीवंत किस्से सुनाए ऐसा लगा जैसे 30 साल पहले सब लाइव प्रसारण चल रहा हो। छोटे छोटे बच्चों के साथ भी खूब बातें कर अपना बचपन याद किया।
इंदल सिंह रावत सर टी आई रूपझर ने सदैव सहयोग किया। Asi नेहरू बहेरवंश को क्षेत्र का अच्छा ज्ञान है लोकल होने का फायदा मिलता ही है, स उ नि पटेल जी सतना वाले बेहद शांत स्वभाव के हर छोटी बड़ी बात शेयर करना,मोनू झारिया स्मार्ट बॉय से भी सुबह शाम खूब दरबार किया,लक्ष्मण सिंह का आधा घी तो मैं ही खाकर उसका कर्जदार बन गया,चौकी का मददगार सुनील भदौरिया चौकी की तमाम जानकारी रखने वाला रजिस्टर मेंटेन करने वाला उसे सब पता है कुछ बताने की जरूरत नहीं एकदम जिम्मेदार प्रभारी के प्रति वफादार,सचिन रंगारे व अतुल शर्मा से ज्यादा मुलाकात नहीं हो पाई।
कुल मिलाकर उकवा चौकी के स्टाफ व जनता ने उम्मीदों से परे भरपूर प्यार व सम्मान दिया,उसका बहुत बहुत आभारी हूँ। स्पेशल आपरेशन ग्रुप के राजेश सुनील राजकुमार,ओमवीर अनुज,हर्ष, सुमित व मनोज का बहुत बहुत धन्यवाद जिन्होंने रात रात जागकर पहरेदारी की अपनी आंखों को झपकी नहीं लेने दी,जिनके कड़े पहरे में नक्सल क्षेत्र में होने पर भी भरपूर नींद ली।
अब किरनापुर में फिर से नए चेहरे,नई जिम्मेदारी, नई चुनौतियां। फिर ऐसे किसी लेख के साथ आपसे मिलता हूँ।
‘जय हिंद,जय भारत।’
शिवपूजन मिश्रा
थाना प्रभारी किरनापुर
जिला बालाघाट मध्य प्रदेश
समाचार संकलन प्रफुल्ल कुमार चित्रीव बालाघाट