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विश्व आदिवासी दिवस के पवित्र अवसर पर…

9 अगस्त 2022 गरिमामय कार्यक्रम प्रशांत वाटिका लान पथरवाड़ा रोड तहसील मुख्यालय कटंगी में बड़े ही हरसोल्लास के साथ संगीतमय गीतो पर डीजे की धूम पर नाचते हुए नगर में प्रभात फेरी निकाली गई प्रभात फेरी में कटंगी पुलिस बल सहित स्टाफ भी चलते रहे। आदिवासी युवाव के द्वारा हाथो में आदिवासी ध्वज एव तिरंगा ध्वज के साथ बड़ी संख्या में बहुसंख्यक समाज के लोग चलते रहे। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि मा. न्यायविद नितिन कुमरे, आदिवासी विकास परिषद के फुलसिह परते , डीएस कुमरे, मंचासीन रहे व कार्यक्रम की अध्यक्षता दादा सखाराम इनवाती ने की इस अवसर पर सामाजिक नवनिर्वाचित पंच, सरपंच, जनपद सदस्यों सहित भुमका संघ उपस्थित रहा। इस अवसर पर न्यायवित नितिन कुमरे भोपाल ने कहा …

विश्व आदिवासी दिवस के पवित्र अवसर पर पधारे मंचासीन समस्त अतिथियों का स्वागत ,वंदन ,अभिवंदन एवं सामने बैठे सभी समाजिक भाई बहन और साथियों को मेरा अभिवादन।। साथियों यह हमारा सौभाग्य है कि ईश्वर ने हमें इस संसार में आदिवासी बनाकर भेजा आप सब जानते हैं आदिवासी का अर्थ होता है मूल निवासी यानी कि जो लोग जिस देश के मूल निवासी होते हैं उन्हें आदिवासी कहा जाता है आज से ठीक 39 साल पहले 9 अगस्त 1983 को जब संयुक्त राष्ट्र संघ को यह एहसास हुआ कि भोले-भाले आदिवासियों के साथ पक्षपात हो रहा है ।वह उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं, बेरोजगारी और बंधुआ बाल मजदूरी जैसी समस्याओं से वह जकड़े हुए हैं तब इन समस्याओं को सुलझाने के लिए आदिवासियों के मानव अधिकार को लागू करने और उनके संरक्षण के लिए एक कार्यदल का गठन किया गया जिसके बाद पूरे विश्व भर के मूलनिवासी यानी की आदिवासियों ने 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस मनाना शुरू किया ।यह मेरा सौभाग्य है कि अपने सामाजिक लोगों के बीच में आकर मुझे इस विषय में बोलने का मौका मिला। स्वतंत्रता के लगभग 75 साल पूरे हो गए हैं और हम 75 साल को महापर्व के अवसर पर मनाने की तैयारी कर रहे हैं ।आज भी हमें यह विचार करना होगा कि क्या भारत जैसे विशाल देश में हमें वाकई पूरी तरह से आजादी मिली या फिर आज भी हम गुलाम है ।75 साल पहले हमे अंग्रेजों की गुलामों की जंजीरों से छुटकारा तो मिल गया लेकिन आज भी कई ऐसे लोग है जो गुलामी की जंजीरों से जकड़े हुए है। इस देश में कई ऐसे गांव हैं जहां के भोले भाले आदिवासी लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं । देश की आज़ादी के 75 साल हो गए और ऐसे दौर में भी हमें अपने अधिकार के लिए बात करना पड़ रहा है जो हमारे लिए एक विचारणीय प्रश्न हो सकता है। असल में हमारे पिछड़ने की एक सबसे बड़ी वजह शिक्षा का ना होना है। देश के संविधान के रचयिता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जी ने कहा है शिक्षित बनो संगठित रहो लेकिन अभी भी हमारे समाज में शिक्षा का स्तर इतना नहीं उठ पाया जिसकी कभी डॉक्टर भीमराव अंबेडकर जैसे महान विचारक ने कल्पना किया था। किसी भी व्यक्ति और समाज के आगे बढ़ने का सबसे प्रमुख औजार यदि कुछ है तो वह शिक्षा है ।यदि हम शिक्षित होंगे तो अपने परिवार अपने समाज को आगे बढ़ा सकते हैं और एक ऊंचाइयो तक उसे पहुंचा सकते हैं। आदिवासी के लिए सरकारें कई योजनाएं लाती तो है लेकिन सरकार की योजनाएं उन आदिवासियों तक नहीं पहुंच पाती जो इसके असल हकदार होते हैं ।हम सबको मिलकर संगठित होना होगा और अपने अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को आगे लाकर उसे शिक्षित और संगठित करते हुए एक बेहतर कल बनाने का प्रयास करना होगा वरना हर साल 9 अगस्त को हम यूं ही विश्व आदिवासी दिवस मनाते रहेंगे ,मंच में आएंगे भाषण देंगे और चले जाएंगे लेकिन कभी भी हमारी दशा और दिशा नहीं सुधर सकती ।हमें अपनी दशा और दिशा सुधारने के लिए दृढ़ संकल्पित होना होगा और अपने समाज को आगे बढ़ाने के लिए एकजुट होकर काम करना होगा तभी विश्व आदिवासी दिवस मनाने का औचित्य है वरना यह सिर्फ रस्म अदायगी बनकर रह जाएगी ।आज कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों से मेरा अनुरोध है कि आप सभी हमारे समाज के असली हीरो बिरसा मुंडा, रानी दुर्गावती जी, शंकर शाह, रघुनाथ शाह जैसे अनेकों शहीदों की शहादत को याद कर अपने बच्चों को उनके इतिहास से अवगत कराएं ताकि उन्हें पता चल सके कि समाज के उत्थान और कल्याण के लिए कई शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति दिया तब जाकर हम इस तरह के आदिवासी दिवस मनाने के लिए स्वतंत्र है वरना हमारी गुलामी तो हर एक घर की गुलामी हुआ करते थे और आदिवासियों को लोग अछूत का समझ कर छोड़ दिया करते थे ।। इन पंक्तियों के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ ” पंख काफी नही है आसमानों के लिए,हौसला भी चाहिए ऊंची उड़ानों के लिए” सभी का एक बार फिर से धन्यवाद।।

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