#वैवाहिक वर्षगांठ पर विशेष
#अनकहीअनसुनीबातें
“जब काजे के बाति चली त ओन्हा साजय लागेन,
मउर बांधि ससुरारि गएन त काजर आंजय लागेन।
दौड़ि दौड़ि के भमरी परि गय निकहा करेन कलेबा,
मलकिनि आईं बिहान भये से भंड़बा माँजय लागेन।।”
“परसों का दिन यानी 21 जून,
इस दिन घरवालों द्वारा हमें एक बंधन में बंधवाया गया और वो पवित्र बंधन था वैवाहिक बंधन। इतने कार्यक्रमों में मैं मेरे दोस्तों के साथ गया,ताक झांक भी की,खूब रसगुल्ले,गाजर का हलवा,आइस क्रीम खाने की होड़ भी लगाई लेकिन कभी किसी ने नोटिस करना तो दूर नजर उठाकर देखा तक नहीं लेकिन पहली बार किसी वैवाहिक कार्यक्रम में ऐसा हुआ कि सबकी नजरें मेरी तरफ हर कोई देखे ही जा रहा था।
मेरे मित्र तेजभान जो साथ में थे उनसे हमने कहा- “सब हमहिन का काहे झाँकत हें, डीठि लगाय देइहीं का।” तेजभान इस मामले में 5 साल अनुभवी व्यक्ति थे उन्होंने बताया कि यह सब तुम्हें नहीं दूल्हे को देख रहे हैं कि कौन है जिसकी प्याज कटने वाली है,जिसको बांधा जा रहा है, आजादी छिन रही है,एकबारगी तो लगा कहां फस गए,फ़िर कहते हैं ना कि शादी का लड्डू जो न खाये वो पछताए इसलिए तेजभान की बात को अनसुना कर खा ही लिया। लेकिन शुक्रगुजार हूँ ऊपर वाले का की खाकर अब तक पछताना नहीं पड़ा।
आज बात करते हैं उसकी जिसका बालम थानेदार है, जिप्सी भी चलाता है लेकिन वो गाना नहीं गा रही है, पूरी वेतन उसके हाथ में है लेकिन खर्च नहीं कर रही है घर की मुखिया है वो क्या लेना है क्या नहीं। कहती है तिनका तिनका जोड़ना है,घर बनाना है। सब उसे ही पता है,हम तो झोला उठाये और चल दिये।
विवाह के इतने सालों में उसको मेरी हर बात,हर आदत पता है,बिना कहे ही सब समझ जाती है। मेरी बॉडी लैंग्वेज पर उसको पीएचडी है खांसने में,सुरूकने में नाक फुलाने में,आंख दिखाने में वह मेरे मनोभावों को समझती है। मेरे खाने का एक एक निवाला उसे पता है उससे ज्यादा खा ही नहीं सकते इतना सटीक अंदाजा भविष्यवेत्ता न कर पाएं।
झूठ बोलो तो जैसे पॉलीग्राफ लगा हो झट पकड़ा जाता है। सबकी केअर टेकर है वो। पुलिस की फैमिली की दिक्कत यही होती है कि वो भी जागते जागते पुलिस ही बन जाती है,बस गश्त नहीं करती। ज्यादा से ज्यादा मेरा समय चाहती है किंतु मेरा समय असमय है। लड़ती है,गुस्सा भी करती है लेकिन गुस्से में भी खाना खिलाना नहीं भूलती।
पत्नी और मां का किरदार अलग अलग निर्वहन करते हुए कभी थक भी जाती है लेकिन कभी प्रदर्शित नहीं करती।
श्रीमती जी के आने से मेरे मन के मरुथल में खुशियों की घटा ने प्यार की बारिशें कर दी, तथा एक रेगिस्तान को हरा भरा उपवन बना दिया।मेरे जीवन को एक नई दिशा दी। शुरू-शुरू में मुझसे बहुत डरती थी अब ढीठ हो गई है। मेरे हर निर्णय में सहभागी रहती है।
सबसे ऊपर लिखी पंक्तियां मेरे द्वारा लिखी गई है मुझ पर कभी लागू नहीं हुई, हास्य के लिए लिखा पर ये बहुतों की व्यथा भी हो सकती है। मैं पहले भी लापरवाह था श्रीमती जी के आने के बाद से और लापरवाह हो गया।एकदिन के लिए भी कहीं चली जाए तो असहाय हो जाऊं,उसने मुझे नवाब बना दिया है जो अपने मोजे भी जब तक न उतारे जाए तो नहीं उतरते।अब बालाघाट में परेशानियों से रोज दो चार हो रहा हूँ।
एक दिन स्वयं सेवक बनने की ठानी और कच्चा पक्का बनाकर खाये फिर क्या दो दिन ऐसा लगा जैसे खाने में जमालघोटा मिला दिया हो लोटे के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा था। तब से ये भूत उतर चुका है। श्रीमती जी को वैवाहिक वर्षगांठ की बहुत बहुत शुभकामनाएं। मेरे बेरंग जीवन में इंद्रधनुषी रंग भरने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हमारा तुम्हारा प्यार तब तक बना रहे जब तक जन्म-जन्मांतर का बंधन खत्म न हो जाये। तुम्हारे लिए चंद लाइनें तुमको समर्पित हैं।”
“वादा कभी टूटे ना,
साथी मेरा रूठे ना।
प्यार रहे जन्मों तलक,
ये साथ कभी छूटे ना।। “
‘शिवपूजन मिश्रा’
थाना प्रभारी किरनापुर
बालाघाट (मध्य प्रदेश)