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सागर के लिए जीवनदायिनी “राजघाट” देने वाले पूर्व कलेक्टर नायडू का सम्मान

विशेष संवाददाता ! सागर

डॉक्टर हरिसिंह गौर जी की जन्म दिवस पर सागर गौरव दिवस का आयोजन में दिनांक 26 नवंबर 2022 को सम्मानित होने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ। 20 वर्ष पहले मैं सागर में कलेक्टर के पद पर कार्यरत था। उस दौरान सागर की भीषण जल संकट समस्या को स्थाई तौर पर समाधान करने का अवसर मुझे प्राप्त हुआ। मेरी सेवानिवृत्ति के पश्चात तथा जिला छोड़ने के 20 साल के बाद भी सागर के जनता के द्वारा मेरे कर्तव्य निर्वहण के दौरान किया गया काम को याद रख कर मुझे सम्मानित करने का निर्णय लेने के लिए मैं आयोजन समिति के प्रति आभार व्यक्त करता हूं। इस अवसर पर सागर जल समस्या को दूर करते वक्त मेरे अनुभवों को साझा करना चाहता हूं।

सागर का जल संकट ऐसा विकराल समस्या थी लोगों को गर्मियों के दिनों में तीन-चार दिन में एक बार नल से एक घंटा पानी बहुत मुश्किल से मिलता था। हैंड पंप सूखे थे। नलों के सामने लंबी कतारें, लड़ाई झगड़े आम बात थी। संकट में लाभ का अवसर ढूंढने वाले व्यापारियों के लिए टैंकरों से पानी सप्लाई करना फलता फूलता धंधा था। इस समस्या से ज्यादातर पीड़ित

महिलाएं तथा कमजोर, गरीब और मध्यमवर्ग परिवारों के लोग थे।

इस समस्या का स्थाई समाधान के लिए बेवस नदी पर बांध बनाकर नगर की जल आपूर्ति करने हेतु सागर जल आवर्धन परियोजना के नाम से एक परियोजना शासन के द्वारा मंजूर किया गया था। नगर निगम का इस परियोजना का क्रियान्वयन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के द्वारा किया जा रहा था। परियोजना को प्राप्त राशि नगर निगम के द्वारा अपने कर्मचारियों का तनखा बांटने में, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के द्वारा प्राप्त राशि से अनावश्यक खर्चों में उपयोग करने से कार्य में निर्धारित प्रगति समय पर ही नहीं हुई। इस परियोजना को फाइनेंस करने वाली जीवन बीमा निगम ने आगामी किस्ते रोक दिया। परियोजना का चलते 4 साल गुजर गया, परियोजना का लागत 3 गुना हो गया। कार्य रुक गया। समस्या जैसा का तैसा था।

मेरे सामने सर्वप्रथम चुनौती थी नगर निगम को इस बात के लिए राजी करना कि वे बढ़ी हुई लागत के आधार पर परियोजना के लिए पुनः लोन लेने के लिए और

परियोजना का संचालन लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग को देने के लिए सहमत होकर विधिवत प्रस्ताव पारित करे। इसके बगैर एक कदम भी आगे बढ़ना संभव नहीं था। नगर निगम परिषद की इस कार्य की हेतु बुलाई गई विशेष सत्र में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में उपस्थित होकर आपने पक्ष मजबूती से रखते हुए परिषद को संकल्प पारित करने हेतु आग्रह किया। परिषद के द्वारा उक्त आशय का संकल्प पारित किया गया।

बढ़ी हुई लागत के आधार पर पुनरीक्षित परियोजना प्रस्ताव को लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के द्वारा दोबारा तकनीकी स्वीकृति एवं प्रशासकीय स्वीकृति जारी की गई। हुडको से पुनरीक्षित परियोजना का राज्य शासन के गारंटी के आधार पर मंजूर किया गया। संबंधित विभागों के शीर्षस्थ अधिकारियों से बात कर इन सभी स्वीकृतियां प्राप्त करने में मुझे कोई विशेष कठिनाई सामना करना नहीं पड़ा। यह काम कोई भी कलेक्टर कर सकता था।

परियोजना के क्रियान्वयन में असली चुनौती डैम का निर्माण से डूब में आने वाले प्रभावित किसानों की थी।

10 गांव में बसे हुए 500 से ज्यादा किसानों का 1200 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन डूब में आ रही थी। लैंड एक्विजिशन एक्ट के अंतर्गत जमीनअधिग्रहण करने का अलावा और कोई विकल्प नहीं था। इससे परियोजना का लागत 3 गुना और बढ़ जाती। मेरा कार्यकाल में यानी ज्यादा से ज्यादा 3 साल में केवल लैंड एक्विजिशन, किसानों का रिहैबिलिटेशन ही हो पाती। यदि सब कुछ ठीक चलता तो।

मेरा इरादा मेरा कार्यकाल में ही डैम का निर्माण कर सागर के लोगों को जल संकट का स्थाई निदान देना था।

मैंने डूब प्रभावित गांवों का दौरा करना शुरू किया। लोगों को यह समझाना शुरू किया कि कैसा डैम बनने से कुछ लोगों का जमीन जरूर डूब में जाएगी। परंतु डूब से बचने वाली जमीन सिंचित होने से दो फसली होगी। और उनका आर्दिक विकास होगा। कैसे डूब में जाने वाली जमीन को भी पानी कम होने पर दूसरी फसल लिया जा सकता है। मैंने लोगों को यह भी बताया कि कैसा लैंड एक्विजिशन एक्ट के कंपनसेशन के बदले मध्य प्रदेश भू राजस्व संहिता के प्रावधानों का सरकारी भूमि से

विनिमय करने में उनको फायदा होगा। भूमि के बदले भूमि लेने के लिए उनको जिले में अन्यत्र गांवों में उपलब्ध शासकीय जमीन जो वह लेना चाहते हैं उनको दिखा कर सहमति प्राप्त कर प्रत्येक प्रभावित किसान का पृथक पृथक केस बनाकर जमीन प्राप्त करने की वैधानिक कार्यवाही की गई।

यह सारी प्रक्रिया साधारण नहीं था। सरल बिल्कुल नहीं था। किसान मानने के लिए राजी नहीं था कि वह इस गांव में जमीन छोड़कर दूर जाकर अन्यत्र किसी गांव में जमीन लेकर बस जाएं। इस प्रक्रिया से असंतुष्ट एक भी किसान यदि हाई कोर्ट चला जाता है की उनकी जमीन लैंड एक्विजिशन एक्ट के अंतर्गत अधिग्रहण किए बगैर शासन के द्वारा डैम का निर्माण किया जा रहा है तथा उनकी जमीन डूब में आ रही है उनके जीवन यापन संकट में है कोर्ट स्थगन आदेश देने में कोई देरी नहीं करती।

डैम का निर्माण जिस क्षेत्र में हो रहा है वहां के स्थानीय विधानसभा सदस्य शासन के विपक्ष की पार्टी की सदस्य हैं। वे विरोध की राजनीति अपनाते तो 10 गांवों में से

10000 लोगों को जब चाहे तब एकत्रित करके इस आधार पर काम रुकवा सकते थे कि किसानों का मुआवजा दिए बगैर डैम का निर्माण हो रहा है। उनकी राजनीति चमकती। उनके ऊपर कोई दोषारोपण भी नहीं कर सकते थे। अगर वे नहीं आंदोलन करते तो और कोई भी आंदोलन जीवि इस मुद्दे को उठाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक सकता था।

किसानों से जमीन अधिग्रहण करने का, परियोजना प्रस्ताव पर विभिन्न स्वीकृतियां प्राप्त करने का, एवं डैम का निर्माण रिवर क्लोजर में काम शुरू होने के पश्चात बिना रुकावट निरंतर चलने का सारी कार्रवाई समानांतर चलाए गए। सभी चुनौतियों का मुकाबला किया गया। इस परियोजना को पूर्ण करने के लिए राज्य शासन के द्वारा मेरे पदोन्नति होने के बाद भी कमिश्नर के रूप में इसी संभाग में पदस्थ किया गया जो अपने आप में एक अपवाद था। सामान्य वैधानिक प्रक्रिया से हटकर किया गया मेरा प्रयास सफल हुआ। कोई भी चूक होती तो मेरी नौकरी खतरे में पड़ सकती थी। मेरे इरादे नेक थी। मेरा संकल्प सिद्धि में भागवत शक्ति मेरा साथ दिया। संवाद के आधार पर जन भागीदारी का एक मिसाल कायम हुई।

सागर वासियों के लिए पेयजल कि आपूर्ति आगामी 100 वर्ष तक करने की क्षमता राजघाट डैम में है। 25 साल के बाद इसमें 2 मीटर ऊंछा गेट्स लगाने के लिए प्रावधान रखा गया था। गेट लगने से पानी का स्टोरेज द्विगुणीक्रृत होगा।अब वह समय आ गया है। जब मैं बांध को देखता हूं तो उसके रखरखाव में भी काफी कमियां दिखते हैं। जल वितरण मे भी वेस्टेज रोकना आवश्यक है। इस दिशा में जन जागरण कार्यक्रम भी चलाना होगा।मुझे आशा है की वर्तमान प्रशासन इस दिशा में आवश्यक कार्रवाई करेगा।

(लेखक सागर के पूर्व कलेक्टर बी राजगोपाल नायडू हैं)

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