होना ऐसा ही था … देर से ही सही !
जतर-मंतर पर पहलवानों का धरना जारी है। पहलवानों की शिकायत पर आखिरकार दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद यह कार्रवाई हुई है। ऐसे में दिल्ली पुलिस को लेकर सवाल अभी बने हुए हैं। वहीं, पहलवानों के मामले में पूरे खेल ढांचे की भी सुस्ती साफ दिखाई देती है। सात महिला पहलवानों की यौन उत्पीड़न की शिकायत के मामले में शुक्रवार को आखिर दिल्ली पुलिस एफआईआर दर्ज करने को तैयार हो गई। लेकिन इस मामले में अब तक पुलिस और खेल प्रशासन का जैसा ढीला-ढाला रवैया रहा है, उससे उपजे सवाल इस पेशकश से समाप्त नहीं हुए हैं। कुश्ती की अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में गोल्ड लाकर देश का नाम ऊंचा करने वाली महिला पहलवानों ने कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया, यही अपने आप में इतनी बड़ी बात थी कि देश के पूरे खेल ढांचे को अलर्ट मोड में आ जाना चाहिए था। मामले में अपनी तरफ से पूरी तहकीकात करते हुए यह बात शीशे की तरह साफ कर देनी चाहिए थी कि मामला क्या है, किसकी कितनी और कैसी गलती है और उसके लिए उन्हें किस तरह की सजा दी जा रही है। मगर तीन महीनों में जांच-पड़ताल के नाम पर जो कुछ हुआ, उसका नतीजा तक सार्वजनिक नहीं किया गया। न तो शिकायत करने वाले संतुष्ट हुए और न आरोपों के घेरे में आए लोग बेकसूर साबित हुए। इस ढीले-ढाले रेस्पॉन्स का ही परिणाम था कि महिला पहलवानों को एक बार फिर जंतर-मंतर पर बैठना पड़ा। उससे पहले ही वे पुलिस में शिकायत भी दर्ज करवा चुकीं थीं। कायदे से इतनी गंभीर शिकायत पर तत्काल एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी, जांच-पड़ताल उसके बाद की जा सकती थी, लेकिन पता नहीं पुलिस के मन में क्या संशय था, उसने एफआईआर भी दर्ज नहीं की। जब पहलवान सुप्रीम कोर्ट गए और कोर्ट ने कड़ा रुख दिखाते हुए मामले की गंभीरता का अहसास कराया, तब भी पुलिस ने पहले यही कहा कि वह कुछ जांच करना चाहती थी, लेकिन अगर कोर्ट कहे तो एफआईआर दर्ज कर लेगी। हालांकि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने पर अपनी तरफ से कह दिया कि वह आज ही एफआईआर दर्ज कर लेगी। यह स्पष्ट नहीं हो सका कि आखिर किन बातों ने पुलिस को रोक रखा था और किन वजहों से उसका रुख बदला। ऐसे में स्वाभाविक ही कोर्ट उसकी इस दलील से सहमत नहीं हुआ कि एफआईआर दर्ज करने के फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं की मांग पूरी हो गई है, इसलिए कोर्ट को यह मामला बंद कर देना चाहिए। अदालत ने मामला जारी रखते हुए शुक्रवार को अगली सुनवाई रख दी है। जाहिर है, आगे पुलिस इस मामले में क्या और कैसी कार्रवाई करती है, इस पर नजर बनी रहेगी। बहरहाल, इंडियन ओलिंपिक असोसिएशन की प्रेसिडेंट पीटी उषा ने पहलवानों के धरने को अनुशासनहीनता बताकर एक और विवाद छेड़ दिया। खेल जगत की चुप्पी भी गलत संदेश दे रही थी। अच्छा है कि यह चुप्पी टूटी। यह जांच से पहले ही किसी को दोषी मानने या बताने की कोशिश नहीं, बल्कि पूरे मामले की निष्पक्ष और विश्वसनीय जांच कराने का आग्रह है, जो एक संवेदनशील और न्यायप्रिय समाज की अनिवार्य विशेषता है।