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राजनेता और राजनीति ….

राजनेता और राजनीति

भारत एक कृषि प्रधान देश है ।वर्षों की पीड़ा आज भी किसान झेल रहा है ।किसानी आज एक महत्वपूर्ण रोजगार बन सकता है साधन हो सकता है जीविका के लिए? जो आम जनमानस के लिए नितांत आवश्यक है ।सभी वर्ग इस पर निर्भर रहते हैं ,क्या कारण है कि एक राजनेता अपनी राजनीति के लिए समाज को जाति के नाम पर बैठकर अपना धंधा और अपना जिंदाबाद करते रहता है ।माना कि

किसी कुम्हार के पास दस बीघा जमीन है, पर वह किसानों के मुद्दे पर नहीं लिखता-बोलता है.

किसी राजपूत के पास पचास बीघा है, किसी माली के पास तीस बीघा जमीन है, किसी ब्राह्मण के पास बीस बीघा जमीन है, किसी मेघवाल के पास पंद्रह बीघा जमीन है- पर वे किसानों और खेती के मुद्दे पर नहीं बोलते हैं. वे किसी किसान आन्दोलन का हिस्सा नहीं बनते हैं.

क्यों ?

जबकि किसान आंदोलनों से सरकार पर पड़े दबाव से मिलने वाले लाभ सभी किसान आराम से लेते हैं.

जबकि खेती के हाल खराब होने से उनका परिवार भी भुगतता है.

चलो, किसी के पास जमीन नहीं है और दूकान है . अगर खेती बढ़िया होती है तो पैसा उसके पास ही आना है, पर वह किसी किसान आन्दोलन का हिस्सा नहीं होता. वह फसल बर्बाद होने पर नहीं बोलता है. उसे भी तो कम फसल का नुकसान होगा न ?

ऐसा क्यों है ? इनकी गलती नहीं है मित्रों. इसके पीछे छुपी मानसिकता को समझो. हमारे ‘राजनेता’ और उसकी बाँटने वाली ‘राजनीति’ ने समाज में इतना जहर घोल दिया है कि ‘किसान’ नाम से पहचान ही ख़त्म कर दी है. पहचान के नाम पर उसे फिर ‘जाति’ और सम्प्रदाय’ के बिल्ले पकड़ा दिए गए हैं. गाँव से लेकर दिल्ली के चुनाव तक उसके लिए जाति की इज्जत महत्वपूर्ण होती है, परिवार की नहीं ! परिवार की इज्जत तो आर्थिक स्थिति अच्छी होने पर बचेगी न ?

हाँ, ‘व्यापारी’ और ‘उद्योगपति’ अपने हितों के लिए एक हो जाते हैं, वे जाति-सम्प्रदाय में नहीं पड़ते हैं ! यही कारण है कि सभी सरकारें अधिकतर व्यापारी और उद्योगपति से संवाद करती हैं. अखबार उनके बारे में अधिक लिखते हैं. किसान केवल चुनाव में याद आते हैं या भीड़ करने के लिए.

खेती और किसान के मुद्दे पर बोलना अब आउट ऑफ़ फैशन हो गया है. सोशल मीडिया को आप समाज के दर्पण के रूप में देख सकते हैं. कितने लोग किसान या उससे जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं. मात्र कुछ लोग किसान-किसान करते रहते हैं. जबकि भारत और राजस्थान में तीन चौथाई आबादी इसी धंधे पर निर्भर है. पक्का मान लो, जितना सरकार, समाज और मीडिया इस धंधे की उपेक्षा करेगा, उतना ही भारत गर्त में जाएगा. ये छल्लेदार बातें कुछ काम नहीं आने वाली. अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारते रहोगे ?

“देश की सम्रद्धि का रास्ता खेत खलिहान से हो कर गुजरता है।”

इस लाइन का अर्थ समझ लोगे तो किसान और खेती किसानी को भी समझ लोगे

जय भारत -जय संविधान जय किसान

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