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लोग नाहक किसी मजबूर को कहते है बुरा…

लोग नाहक किसी मजबूर 

     को कहते है बुरा

       आदमी अच्छा है पर

         वक्त बुरा होता है !

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*जन्मभूमि-टाईम्स&*

    *जेबीटी आवाज*

*प्रिंट&इलेक्ट्रानिक्स*

  *मिडिया समूह*

                 सपांदक

 

“कल बुरा था

*आज अच्छा आएगा*

 वक्त ही तो है 

*रुक थोड़ी ना जाएगा*

 

*मूल उत्तर:* दोनों एक ही _उपहार या शिक्षा से भरे हैं!

 

*व्याख्या*

बिना कहे सवालों को विश्लेषण के द्वारा समझते हैं!

 

*जीवन में वक्त* अच्छा होता है या बुरा होता है?

 

*क्या जीवन में कोई* वक्त अच्छा होता है तो कोई वक्त बुरा होता है?

 

*क्या किसी वक्त* जीवन अच्छा होता है या बुरा होता है?

 

*क्या जीवन तो* हमेशा ठीक होता है परंतु वक्त ही अच्छा और बुरा होता है?

 

*क्या वक्त तो* एक जैसा होता है और जीवन ही अच्छा बुरा होता है?

 

*अगर आप सोचते हैं* कि वक्त ही सब कुछ है और जीवन कुछ नहीं तो आप सही नहीं सोचते ।

 

*अगर आप सोचते* हैं कि जीवन ही सब कुछ है और वक्त कुछ नहीं है तो आप सही नहीं सोचते ।

 

*क्या आप सोचते हैं* कि जीवन तो हमेशा अच्छा है सिर्फ वक्त ही अच्छा और बुरा होता है? सही नहीं सोचते

 

*यदि आपकी ऊपर* लिखित में से कोई भी उक्ति सही मानते हैं यह सिर्फ आपकी धारणा या मान्यता है!

 

(यदि आप सोचते हैं कि जीवन ही सब कुछ है और वक्त कुछ नहीं है तो आप सही नहीं सोचते ।)

 

*वक्त और जीवन का परस्पर संबंध जानने का प्रयत्न करते हैं।*

 

*तो हमे जानना है* है कि वक्त क्या है?

और जानना है कि जीवन क्या है?

 

जो *मनुष्य का जीवन* है वह जन्म और मृत्यु के बीच में वक्त ही तो है।

 

क्या वक्त के बिना जीवन संभव है?

नहीं अभी नहीं ,कभी नहीं

 

*जिसको मनुष्य जीवन* कहता है, वह जन्म और मृत्यु के बीच में जो है वह जीता है वही तो जीवन है।

 

*होने को तो वक्त* जिसका नाम है वह मनुष्य के लिए जीवित हुए बिना कुछ भी नहीं है।

 

*वक्त संसार का ही दूसरा नाम है।* संसार और वक्त हमेशा एक ही है। संसार के बिना वक्त है ही नहीं। और मनुष्य के बिना भी वक्त है ही नहीं।

 

*जीवन से बड़ा* और वक्त से बड़ा जीवन में कुछ भी नहीं है। जीवन और वक्त एक ही है । वक्त के बिना जीवन हो ही नहीं सकता है।

 

*क्या करें* क्या ना करें?

इसलिए वक्त का हमेशा स्वागत करना है ।जब हम वक्त का स्वागत करते हैं तो हम जीवन का स्वागत करते हैं ।

*ऐसा हो ही नहीं सकता* कि हम जीवन का तो स्वागत करें और वक्त का स्वागत ना करें।

*ऐसा भी नहीं हो सकता* कि हम वक्त का स्वागत करें और जीवन से मुंह मोड़ ले ।

 

*जीवन और वक्त* एक सिक्के के पहलू ही नहीं बल्कि दोनों ही एक हैं। बल्कि जीवन और वक्त एक पूरा सिक्का है। जीवन और वक्त पर्यायवाची शब्द है और पर्यायवाची एक्जिस्टेंस हैं।

 

*हमसे जीवन में त्रुटि सिर्फ* एक ही होती है कि हम वक्त को बुरा और अच्छा मानते हैं ।

 

*जिस वक्त को हम बुरा* या अच्छा मानते हैं उसमें अनगिनत परिवर्तन होते रहते हैं। परिवर्तन परिवर्तन होता है वह अच्छा और बुरा नहीं कह लाता।

*यह सिर्फ हमारी मान्यता* (कंडीशनिंग विदाउट लॉजिक) है कि वक्त अच्छा होता है या बुरा होता है ।

 

*हर सांस वक्त की* *नियामत (gift) है।* हर सोच वक्त के नियामत है। हर काम वक्त की नियामत है ।हर अनुभव (महसूस ) और हर पल वक्त की नियामत है।

हमारे लिए वक्त के बिना जीवन नहीं और जीवन के बिना वक्त नहीं है। हमारे बाद वक्त हमारे लिए नहीं (दूसरों के लिए) है ।

 

*जीवन में इसलिए हर क्षण वक्त भी है और जीवन भी हैं ।*

 

तो *हम जीवन को* कैसे जीते हैं, हम जीवन के बारे में क्या सोचते हैं, और हम जीवन में क्या करते हैं, यह वक्त के प्रति जिम्मेदारी हैं। यह जीवन के प्रति जिम्मेदारी है।

 

*वक्त हमेशा* *सौगात* लाता है या *शिक्षा* लाता है। इसके अतिरिक्त कभी कुछ और नहीं लाता और ना ही ला सकते हैं। यह वक्त की सीमा है।

 

*वक्त हमेशा वर्तमान में* होता है। जीवन भी हमेशा वर्तमान में होता है। वक्त और जीवन हमारे लिए हमेशा वर्तमान में होते हैं। जैसे हम जीवन में वापस नहीं लौट सकते वैसे ही वक्त भी हमारे लिए वापस नहीं लौट सकता ।

जैसे हम जीवन में भविष्य में नहीं जा सकते इसी प्रकार समय-समय भी कभी भविष्य में नहीं जा सकता है ।

*कितने आश्चर्य की बात है* कि जिस वक्त को हम अच्छा और बुरा कहते हैं वह तो हमारा ही अभिन्न अंग है। उसके बिना हम कुछ भी नहीं।

तो *अब* अगर हमें जीवन का प्रति कृतज्ञ होना है तो हमें समय के प्रति भी कृतज्ञ हुए बिना जीवन के प्रति कृतज्ञ नहीं हो सकते हैं ।

*इसलिए हमें हर पल* , हर क्षण और हर समय वक्त का उपयोग करना है ।यही है उसका सम्मान और यही है उसकी उपस्थिति।

इसलिए जीवन को समय का उपहार समझ कर उसकी दी हुई उपलब्धि और शिक्षा का सम्मान करें।

*आप किसी को ईश्वर जानते हैं* तो वह समय है और वह जीवन है और वही यह संसार है।

इसके के सिवा अलग से कोई ईश्वर नहीं है। यदि आप अभी भी किसी ईश्वर की कल्पना को ईश्वर मानते हैं तो वह भ्रांति है! *

*जितना** जल्दी आप उस भ्रांति से निकलेंगे उतना ही शीघ्र आप जीवन और समय को समर्पित हो जाएंगे और आनंद के सागर में गोते लगाएंगे।

जीवन भी आनंद है और समय भी आनंद है और दोनों आनंद का स्वरूप हैं। दोनों एक हैं और दोनों ही हमें उपहार और शिक्षा लिए उपस्थित रहते हैं।

 

*समझदारी के साथ* आप अपने वर्तमान जीवन और वर्तमान समय में जो चाहे उपहार हासिल करें और जो चाहे शिक्षा हासिल करें । वास्तव में उपलब्धि और शिक्षा दोनों ही एक से बढ़कर एक उपहार है।यह दोनों उपहार समय के द्वारा मनुष्य को दिए जाते हैं और बुद्धिमान पुरुष इन दोनों उपहारों को सहर्ष स्वीकार करते हैं।

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