#करवाचौथ
आज फिर बढ़ गई उमर मेरी,
पत्नी ने निर्जला व्रत रखा था,
कितना सहती हैं पत्नियां,
अपने सुहाग की रक्षा के लिए,
रखते होंगे कई पति भी,
अपनी पत्नी के लिए व्रत,
सोचा था हम भी इस बार,
कि ज्यादा दिक्कत थोड़े होती होगी,
सिर्फ एक दिन बिना खाए पिए,
रह सकते हैं सब,
क्या इतना कमजोर है व्यक्ति,
कि पेट की क्षुधा भी सह न सके,
बारह बजते तक जठराग्नि ने,
शुरू कर दिया काम अपना,
भूख के चूहे दौड़ने लगे बार-बार,
सुबह से कई बार नाश्ता, चाय को,
ठुकरा चुके थे कैसे कहते की,
अब लालसा है छप्पन भोग की,
लेकिन श्रीमती जी सक्षम हैं,
मेरे अंतर्मन की गहराइयों में छुपे,
विचारों को भी पढ़ने में,
आखिर पकवानों से सजी थाली,
आ ही गई,जिसे नहीं कर पाया मैं मना,
यकीन मानिए जैसे दोनो हाथो से खाया हो,
जाने कितनी बार थाली को भरना पड़ा,
तब जाकर शांत हुई क्षुधा,
मुस्कुरा रही थी मन ही मन में श्रीमती जी
और जैसे कह रही थी,
कि इतना भी आसान नहीं है,
पत्नी का जीवन,
हमें भी लगती है भूख,प्यास,
मीलों सफर करते हैं चूहे हमारे भी पेट में
पर शायद ज्यादा होता है,
पत्नियों का प्रेम पति के लिए,
उनकी कुशलता के लिए रहती है निर्जला,
भले ही तोहफे में ना दे पति,
रानीहार,पासा,हंसुली या देजोर,
बाजूबंद या फिर हाथ के कंगन,
भले ही ना रहे पत्नी के लिए कोई व्रत,
ना करे पूजा और ना ही लगाए चंदन,
वो चाहती है की कभी-कभी,
अपनी और अपने काम की तारीफ भी,
जो काम कहने के लिए तो बेहद सरल,
किंतु वास्तविकता में है अत्यंत कठिन,
सुन रखा था ये सब मैंने,
अनुभवी व भुक्तभोगी साथियों से,
इसलिए चांद के निकलते ही हमने,
बांध दिए अर्धांगिनी की तारीफों के पुल,
और पहना दिया कान का बाला।
पूजा का थाल लेकर खुद चलनी उठाई,
और श्रीमती जी को भरसक देख डाला।।
शिवपूजन मिश्रा
थाना प्रभारी किरनापुर
जिला बालाघाट (मध्य प्रदेश)