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दिव्य श्रीराम बालाजी मंदिर, रामपायली, बालाघाट…

*मेरे प्रभु राम—- जय श्री राम*

 

*दिव्य श्रीराम बालाजी मंदिर, रामपायली, बालाघाट*

 

मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम के चरण पड़ने से पदावली से रामपायली नगरी बन गई। चंदन नदी तट पर मौजूद दिव्य मंदिर में रोजाना सूरज की पहली किरण श्रीराम के चरणों में पड़ती है।

 

सरभंग ऋषि के दर्शन करने आए थे श्रीरामचंद्र जी।

 

मंदिर पुजारी रविशंकर दास वैष्णव बताते है कि त्रेता युग में वनवास के दौरान भगवान श्रीरामचंद्र, माता सीता व लक्ष्‌मण के साथ सरभंग ऋषि के दर्शन करने आए थे। मंदिर के पास ही सरभंग ऋषि आश्रम भी है। चंदन नदी की ढोह में भगवान श्रीराम के वनवासी वेषभूषा वाली यह प्रतिमा मिली थी। जिसे नीम के पेड़ के नीचे रख दिया गया था। उसके बाद नदी तट किनारे 600 वर्षों पूर्व महाराष्ट्र राज्य के भंडारा जिले तत्कालीन राजा मराठा भोषले ने मंदिर को एक किले के रूप में वैज्ञानिक ढंग से निर्माण करवाया था। मंदिर में ऐसे झरोखों का निर्माण है जिससे सूर्योदय के समय सूरज की पहली किरण भगवान श्रीराम बालाजी के चरणों में पड़ती है। भारत के प्राचीन इतिहास में इस मंदिर के निर्माण का उल्लेख है। सन् 1877 में तत्कालीन तहसीलदार स्वर्गीय शिवराज सिंह चौहान ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। भगवान के वन गमन की गाथा का पूरा सार वाल्मीकि रामायण में मिलता है।

भगवान श्रीरामचंद्र? के 14 वर्षों के वनवास का जीवंत बोध कराने वाले तस्वीरें में भगवान श्रीराम, सीता और लक्ष्‌मण वनवास के दौरान रहन सहन और ऋषि आश्रम का जीवन सबरी दर्शन दिए जाने से दृश्य है। जो स्वतः ही श्रद्घालुओं को अपनी ओर खींचती है। श्रीराम मंदिर में प्रमुख सिद्घ मूर्ति बालाजी और माता सीता की है। भगवान राम की मूर्ति वनवासी रुप में है। सिर पर जूट और वामग में सीता का भयभीत संकुचित स्वरुप है। भगवान श्रीराम का बायां हाथ विराट राक्षस को देखकर भयभीत सीता के सिर पर उन्हें अभय देते हुए है। जो भक्तों को भगवान श्रीराम और माता सीता के प्रत्यक्ष दर्शन कराते है। भक्तगण कढ़ाई में पकवान बनाकर भगवान श्रीराम को भोग लगाते है। यहां आने वाले तीन राज्यों के श्रद्घालुओं में मंदिर का इतिहास व इससे जुड़ी किवंदती जानने की जिज्ञासा होती है।

 

चैत्र नवरात्र नवमी को भगवान को पहनाते है नए वस्त्र

भगवान श्रीराम बालाजी के वस्त्रों को एक मुस्लिम टेलर आशिक अली 56 वर्ष द्वारा तैयार किया जाता है हालांकि यह कार्य उनके द्वारा आज से नहीं, बल्कि उनके पूर्वजों से किया जा रहा है। आशिक अली ने बताया है कि उनके दादा हबीब शाह द्वारा कपड़े बनाए जाते थे उनका देहांत 126 वर्षों की उम्र में हुआ। जिन्होंने 88 वर्षो तक भगवान के वस्त्र तैयार किए है। इसके बाद इनकी जिम्मेदारी उनके पिता अहमद अली ने उठाई। उन्होंने 60 वर्षो तक मंदिर में विराजे भगवानों के लिए वस्त्र तैयार किए। वे स्वयं 35 वर्षो से लगातार भगवान के वस्त्र बना रहे है। वस्त्र तैयार करने के लिए कच्चे माल पर लगने वाला व्यय भी खुद अपनी अर्जित कमाई से ही वहन करते है।

 

  • *रविशंकर दास वैष्णव, श्रीराम मंदिर ट्रस्ट पुजारी रामपायली*
  • *समाचार संकलन प्रफुल्ल कुमार चित्रीव बालाघाट*
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