राशन दुकान का चावल नही खाते लोग
सुशील उचबगले की रिपोर्ट
गोरेघाट
सेवा सहकारी समिति से सरकार द्वारा मात्र 2 रु किलो चावल लोगो को रास नहीं आ रहा हैं जबकि सरकार की मंशा रही है की कम कीमत में राशन उपलब्ध करा कर आम जनता को इससे बड़ी राहत मिले जिससे उनका पेट भर सके अधिक से अधिक पैसा अपने परिवार के लिए बचा सके मगर यह तो एकदम उल्टा ही हो रहा है। पठार क्षेत्र में इन दिनों देखा जा रहा है की जहां जहां राशन दुकान में राशन वितरण किया जाता है उसके अगल बगल में तथा किराना दुकानों में उपभोक्ता द्वारा अनाज लेकर तुरंत बेच दिया जाता है और बेचकर उच्च स्तर का चावल और गेंहू खरीदकर लोग उसे खाने में उपयोग कर रहे है। 2 रु किलो चावल लेकर दुकानों में 15 से 25 रु तक बेचकर ज्यादा पैसा कमा रहे है । किराना व्यापारी उसे और भी अधिक रकम लेकर इस चावल को शहर में मिल वालो को बेच देते है।जिससे व्यापारी भी मोटी रकम कमा रहे है। गरीब से गरीब व्यक्ति भी इस राशन से मिलने वाले चावल की नही खा रहे है क्योंकि उसे बेचकर उतने ही रु में उन्हें अच्छे गुणवत्ता का चावल मिल जाता है। समस्त ग्रामों में ये गोरख धंधा काफी दिनों से चल रहा है मगर इसे रोकने के लिए कोई भी अधिकारी द्वारा ठोस कदम अभी तक नही उठाया गया है। जब इस बारे में ग्रामीणों द्वारा चर्चा की गई तो उन्होंने बताया कि जो राशन दुकान में चावल आता है वह खाने में कोई स्वाद नही होता है और काफी मोटे किस्म का चावल होता है जिसे पेट तो भर जाता है मगर मन नही भरता जिसके चलते उस चावल को बेच कर अच्छे किस्म का चावल खरीद लेते है।
राशन दुकान का चावल नही खाते लोग
RELATED ARTICLES