क्या अंबेडकर वादियों को मनुवादी राजनीतिक दलों में शामिल होना ही डॉक्टर अंबेडकर के सपनों को पूरा करने का अभियान है
?????????????
संपादक
सुरेंद्र गजभिए
जेबीटी आवाज टीवी & जन्मभूमि टाईम्स मासिक समाचार पत्रिका (प्रिन्ट &इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समूह )
डॉक्टर बाबा साहब भीमराव अंबेडकर जिनकी जयंती विश्व की सबसे महान .बड़ी. देश दुनिया की जयंती 14 अप्रैल 2023 आ रही है ।जिन्हें हम सूर्य ,महा सूर्य, महामानव ,सहित भारत रत्न ,विश्व भूषण ,संविधान शिल्पी, विद्रोह के प्रतीक ,क्रांतिसूर्य और ना जाने कितने ही विशेषणो से और संबोधन से उनके नाम को अलंकृत करते हैं। निश्चित ही एक युग दृष्टा, युगपुरुष है ।लेकिन जैसे बार-बार कहा जाता है कि जिंदा अंबेडकर से मृत अंबेडकर ज्यादातर ताकतवर सिद्ध होगा ,इन बातों को आज शताब्दी का युग बीता जा रहा है उनके आंदोलन के प्रारंभ काल से लेकर, वर्षो का लंबा दौर चल चुका है। बड़ी ही जद्दोजहद से उन्होंने अछूत उद्धार का आंदोलन चलाया ।पशु तुल्य लोगों को मानवता के हक दिलवाए ।संविधान बनाकर भारत को विश्व में एक शक्तिशाली राष्ट्र बनकर उभरने का राज मार्ग प्रशस्त किया ,और अंत में हिंदू कोड बिल बनाकर भारतीय समाज को सुदृढ़ एवं एक्शन बनाने का प्रयास किया, और वह प्रयास भी अब टूटता नजर आया ।तब बुद्ध धम्म की दीक्षा देकर फिर भारत को उसका खोया हुआ स्वर्ण युग वापस लौटा देने का अपना संकल्प भी पूरा कर दिखा दिया ।भारत को बौद्धमय करना उनकी चाहत थी, और सारा विश्व तथागत बुध्द की राह पर चलेगा यह उनका प्रयास, विश्वास था ।ये राह तमाम बातें उन्होंने बहुत दूर अंदेशों के साथ कही थी। और की थी। उन्होंने संविधान बनाने के बाद जो राज्य एवं अल्पसंख्यक नाम की किताब लिखी उसमें दिए गए उनके संवैधानिक राज्य समाजवादी की संकल्पना से बखूबी स्पष्ट हो जाती है। लेकिन पृथ्वी पर प्रत्येक महापुरुष का यह दुर्भाग्य रहा है कि जिसने कुरुप मनुष्यता को अच्छी शक्ल देने की कोशिश की उसे उसी के लोगों ने बतौर पुरस्कार के सूली ही दी है। मोहम्मद को गांव गांव से खदेड़ने वाले ,कबीर को अपमानित करने वाले ,बुध्द के मुंह पर बसने वाले ,महावीर को प्रताड़ित करने वाले, मन्सूर को पत्थरों से कुचलकर मारने वाले, जीसस को सूली पर लटकाने वाले ,ओशो को जहर देने वाले ,दुनिया के किसी भी धर्म के हो लेकिन उनकी एक जाति सारे पृथ्वी पर एक जैसे होती है .उनका स्वभाव एक ही होता है और वह यह कि अंधे आंख वालों को बर्दाश्त नहीं कर सकते। और बौने नर्तक की घर्ना ही करते हैं ।
विश्व की ऐसी हीअंधी कौमों की तरह भारत भी ऐसे अंधे लंगड़े और अपाहिज लोगों का मुल्क है ।ईश्वर वाद ,आत्मा वाद भाग्यवाद,और वर्ण ,जाति, व्यवस्था का बीज हमारे कलेवर में 000 सालों से इतना भिन्न-भिन्न आ गया है ,कि यह विष उतारने वाला भला ही मर जाए, लेकिन यह मुर्दा कोमेै कभी जागने का नाम तक नहीं लेती ।
गुलामों की जंजीरों को उन्होंने अपना आभूषण मान लिया है ।इसलिए उनकी जंजीरे तोड़ने वाला महापुरुष उन्हें उनका दुश्मन दिखाई देता है जो कौम जीते जी अपने महापुरुषों को मारती है, उस काम को ,फिर मुर्दों को महापुरुष बनाकर उन पर ही जीवित रहना पड़ता है ।आज के अंबेडकरी आंदोलन का चित्र देखकर यह कदापि नहीं कहा जा सकता कि मृत अंबेडकर जिंदा अंबेडकर से ज्यादा ताकतवर होता नजर आ रहा है ।उनकी राजनीतिक शक्ति को जिन्होंने हजारों खेमो में बाटकर तांबा पीतल जर्मन के भाव बेच दिया ।उनकी धम्मसभा का कार्य जिन्होंने कभी गंभीरता से नहीं संभाला। जिन्होंने उनके द्वारा दिए गए आरक्षण को सिर्फ अपनी निजी अय्याशी का अधिकार समझ रखा। जिन्हें लगा कि बाबा साहब के संविधान को दुनिया की कोई ताकत छू नहीं सकती ,तब हमारे आरक्षण को कौन नष्ट करेगा ।वैसे ही खतरनाक एवं आत्मघाती वहम में आज तक रहे ।और देखते ही देखते आज देश में समाजवादी भी अब मनु वादियों के साथ राम राज्य के भगवे रंग में रंगने लगे हैं । वही दलित आंदोलन का युग समाप्त होते ही आरक्षण ,संविधान सर्वधर्म समभाव इन तमाम बातों पर कातिलाना हमला प्रारंभ हो चुका है ।संविधान सेकुलरिज्म अल्पसंख्यकों के अधिकार यह सब कुड़ादान में फेकी जाने लगी है ।
वेद और मनुस्मृति की पुनर्स्थापना करने का पुरजोर प्रयास चल रहा हैं। क्रिश्चियन ,मुसलमानो,अल्पसंख्यो पर सरेआम आंतक ढैया जा रहा है, और हमें शायद ख्याल ही नहीं है ,कि कल हम पर भी सुधनवा और समुद्रगुप्त राजाओं के जमाने का जुल्म ढाया जा सकता है।
जब एक बौद्ध का सिर काट कर लाने वाले को 100 सोने की अशर्फियां दी जाती थी ।
गोधरा कांड यही सब दर्शाते आ रहा है हमारे जनतंत्र के पैरों के नीचे ब्राह्मणवाद मनुवाद पेशवाई और हिंदुत्व की खतरनाक बारूदी सुरंग बिछा दी गई है ।हजारों साल के शक्त रूसी क्रांति को जैसे धराशाई कर दिया गया भारत में भी आर एस एस ,विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल ,शिवसेना और बीजेपी सब मिलकर बाबा साहब की संवैधानिक क्रांति का गला घोटने पर उतारू है ।परिस्थितियां इतनी भीषण है ।
भारत के दलित शोषित बहुजनों को भारतीय संविधान के अलावा इस देश में इंसानों की तरह जीने का कोई और अन्य सहारा नहीं है ।लेकिन अफसोस कि भारत में किसी भी पॉलीटिकल पार्टी ,राजनेता का भारत के संविधान के साथ कोई नैतिक अनुबंध नहीं है। सब राम भरोसे वाला काम है ।जहां बीजेपी वीएचपी, आर एस एस, बजरंग दल ,शिवसेना, आदि मनुवादी पार्टियां और संगठन भारतीय संविधान के खिलाफ सरेआम बकवास करते फिरते हैं ।वहीं अन्य और पार्टियों का रूप कभी मास्को और बीजिंग की तरह होता है ।जो कोई भारतीय संविधान को विदेशी की नकल कहने वाले ,स्वयं वाशिंगटन को अपना बाप मान कर चलते हैं ।देश में केवल अंबेडकर की विचारधारा ही एकमात्र विचार है जो संविधान और उसके ध्येय, उद्देश्यों के साथ 100% मेल खाता है। लेकिन यह गहरा अफसोस है कि हमारा संविधान ही संविधान के दुश्मनों के कब्जे में हैं ।वहीं पर संविधान के साथ शत-प्रतिशत मेल खाने वाली अंबेडकर की विचारधारा की कौम ही आज संविधान से लाखों मिल दूरी पर है ।और इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के लिए स्वयं दलित अंबेडकरी विचारधारा के वर्ग का राजनीतिक नेतृत्व करने वाले लोग जिम्मेदार हैं ।जो अपने बिकाऊपन, गद्दारी ,स्वार्थ और फुट परस्ती के विषैले नर्क में डूबे हैं ।उनके निहित स्वार्थो ने अंबेडकरी आंदोलन को बिखराव के द्वारा मौत के घाट उतार दिया। और जो लोग अंबेडकर के नाम पर सत्ता के करीब जाते नजर आते हैं ,वह अपने बहुजन समाज के मजबूत किले को स्वयं ही सेधं मारकर उस में 3:50 प्रतिशत के गंदे मनुवादी नाले का पानी फिर बहू जनों के राष्ट्रीय प्रभाव में घुसने का प्रयास करते हैं ।
दूसरी ओर अंबेडकरी आंदोलन से लाभान्वित हमारा वर्ग शादी, सगाई सालगिरह, पार्टियां और अय्याशी में इतना डूबा हुआ है ,कि आने वाले कल में निजी करण, भूमंडलीकरण ,आरक्षण समाप्ति ,(एलपीजी )ऑदि संकटोका मुकाबला करने की उसमें अपनी ताकत नहीं रह गई है हम पर एक खतरनाक सोच थोपी जा रही है ।और हमारी कोई तैयारी नहीं है ।
अंबेडकरी विचारधारा की ताकत जो बूंद बूंद से आई थी अब हाथ से चली जा रही है ।कल की आने वाली हमारी पीढ़ियों को रामराज ,हिंदुत्व, सांप्रदायिकता, मल्टीनेशनल कंपनियां, और अमेरिकन समाज, साम्राज्यवाद के सामने सिर्फ सामूहिक आत्महत्या करने के लिये बाध्य करेगी ।हमने हर मुकाम पर हर फ्रंट पर बाबा साहब को इतना निपट फेल्वर कर दिया है कि यदि बाबा साहब भी आज फिर लौटकर यह सब देख रहे होते तो अपने आप को गोली मार देते।
यह जानकर ही तो उन्होंने कहा था कि उनका रथ यदि आगे ले जा सके तो कोई बात नहीं ,कम से कम जहां है वही रहने दे. हमने तो सारा रथ ही गायब कर दिया ।
दरअसल अंबेडकरी आंदोलन की आज तक कोई प्राथमिकता नहीं है। इतने सालो तक हमारे लाखों आरक्षण भोगियों ने सरकारी तिजोरीयों से वेतन के नाम पर प्रति माह करोड़ों करोड़ों का धन प्राप्त किया ,लेकिन इस दुर्लभ संपदा का व्यापक हित मे सदुपयोग करने का विचार नहीं किया।
जरूरत है आत्मनिरीक्षण की।
जय संविधान जय भारत