Heart Tests: आजकल हार्ट डिजीज़ केवल बुज़ुर्गों की बीमारी नहीं रही। बदलती जीवनशैली, तनाव, अनियमित खानपान, धूम्रपान और व्यायाम की कमी की वजह से 30 से 40 साल की उम्र में ही हार्ट अटैक या अन्य दिल की बीमारियाँ सामने आ रही हैं। युवाओं को लगता है कि ये बीमारी उन्हें नहीं होगी, लेकिन यह भ्रम अब बेहद खतरनाक साबित हो रहा है।
ECG: शुरुआती संकेतों की पहचान का पहला तरीका
अगर कभी आपको सीने में भारीपन, तेज़ धड़कन या अचानक थकान महसूस हो तो ECG (Electrocardiogram) जरूर करवाएं। यह टेस्ट दिल की धड़कनों और इलेक्ट्रिकल एक्टिविटी को रिकॉर्ड करता है। यह आसानी से बता सकता है कि दिल में कोई ब्लॉकेज, स्ट्रेस या हार्ट अटैक का खतरा तो नहीं। जल्दी पहचान होने पर इलाज आसान हो जाता है।
ECHO: दिल की कार्यक्षमता जानने का बेहतरीन उपाय
अगर सांस लेने में दिक्कत हो रही है, पैरों में सूजन है या बार-बार थकावट हो रही है, तो डॉक्टर ECHO (Echocardiography) की सलाह देते हैं। यह एक प्रकार का अल्ट्रासाउंड होता है जो दिल की मांसपेशियों, वॉल्व और ब्लड फ्लो को दिखाता है। इससे यह पता चलता है कि दिल कितनी कुशलता से खून पंप कर रहा है।
लिपिड प्रोफाइल: कोलेस्ट्रॉल का सच जानिए
लिपिड प्रोफाइल टेस्ट यह बताता है कि आपके खून में अच्छा (HDL) और बुरा (LDL) कोलेस्ट्रॉल कितना है। अगर बुरा कोलेस्ट्रॉल अधिक है, तो दिल की धमनियों में ब्लॉकेज बनने का खतरा बढ़ जाता है। यही ब्लॉकेज आगे चलकर हार्ट अटैक का कारण बनता है। 30 की उम्र के बाद हर व्यक्ति को यह टेस्ट साल में एक बार ज़रूर कराना चाहिए।
समय पर जाँच से बच सकती है जान
अगर आप समय रहते ECG, ECHO और लिपिड प्रोफाइल जैसे टेस्ट करा लेते हैं, तो आप न केवल संभावित खतरों से बच सकते हैं, बल्कि लाइफस्टाइल में बदलाव और सही दवाइयों से दिल को स्वस्थ रख सकते हैं। खासतौर पर जिन लोगों के परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास है, उन्हें इन टेस्ट को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।