अंधभक्त एवं चमचा …
मैंने अपने लिए अपनी पोस्ट पर कल अपने एक आदरणीय मित्र से अंधभक्त संबोधन लिखा पाया है। इसलिए इस शीर्षक में मैं लिख रहा हूँ।
मैं सोचता हूँ जब कोई व्यक्ति किसी के तर्क को स्वीकार करना नहीं चाहता है, अपनी ही बात मनवाने में असफल रहता है तब खिसिया कर वह, अन्य को अपशब्द कह कर अन्य पर हावी होने की कोशिश करता है।
मैं सोचता हूँ किसी को अपशब्द कहना या किसी की शारीरिक कमजोरी को लक्ष्य करके बात करना, उस व्यक्ति की तार्किक हार होती है।
आज हमारे भारत में अंधभक्त एवं चमचा, ये दो शब्द बड़ी गाली जैसे प्रयोग किए जा रहे हैं। जब और जहाँ भी राजीनीति की कोई चर्चा होती है, उसमें दो पक्ष हो जाना सामान्य बात है। ऐसे में यह भी होता है कि एक पक्ष के पास या तो तर्क नहीं बचते या अपनी बात अन्य पक्ष को को मनवा नहीं पाने की खिसियाहट होती है। तब वे किस पक्ष के समर्थक हैं उस आधार पर अन्य को अंधभक्त या चमचा बताने लग जाते हैं। कई बार ऐसी चर्चा में वे इतने उत्तेजित हो जाते हैं कि मित्रता, वैमनस्य में बदलने में देर नहीं लगती है।
सोशल साइट पर ऐसी चर्चा हुई हो तो ब्लॉक का विकल्प ले लिया जाता है। अगर ऐसी चर्चा आमने सामने हुई हो तो आगे से मिलने पर, दोनों पक्ष दृष्टि बचा कर पास से निकलने लग जाते हैं।
शीर्षक के अंतर्गत मुझे अपना स्पष्टीकरण यह लिखना है कि मैं नेता या छुटभैया नेता नहीं हूँ। मैं मतदाता हूँ, मैंने कभी एक को कभी दूसरी पार्टी को अपना मत दिया है। यह मेरी तत्कालीन समझ और प्रत्याशियों की योग्यता के बारे में अपनी समझ के आधार पर होता रहा है।
बचपन में ही मुझे आँख – कान खुले रखकर देखने, सुनने एवं समझने की शिक्षा मिली है। मैंने लगभग 62 वर्ष का अपना पूरा जीवन इसी भारत में जिया है। मेरे पूर्वज इसी भारत के नागरिक रहे हैं। अभी और आगे की मेरी पीढ़ी भी इसी भारत को अपना देश मानने/कहने वाली है। अपनी जीवन संध्या पर मेरा अभिप्राय मात्र यह होता है कि मेरा यह देश नारों में महान होने के स्थान पर, सचमुच “मेरा भारत महान” बने। ताकि मेरे बाद भी हमारे बच्चे, यहाँ या बाहर रहते हुए, यहाँ के जीवन को सुख-समृद्धि का जीवन अनुभव करें।
मेरे कल वाले मित्र अगर यह पोस्ट पढ़ें तो मैं उन्हें बताना चाहता हूँ कि ना तो मैं अंधभक्त हूँ एवं ना ही मैं चमचा हूँ। मैं यह भी मानता हूँ यहाँ कोई अंधभक्त या चमचा नहीं है। हर कोई भारत की उन्नति का अभिलाषी है। कोई किसी पार्टी की और कोई अन्य पार्टी की नीति में भारत की भलाई समझता है। अगर मित्र को यह समझ में आ जाए तो वे अंधभक्त या चमचा की हल्की ट्रिक से किसी पर वैचारिक दबाव बनाने का प्रयास करना छोड़ दें।
अंतिम बात, मैं राजनीति को अपना लेखन का विषय तब ही कभी कभी ही बनाता हूँ जब देश-विदेश में भारत के विरुद्ध नरेटिव बनाने के किसी प्रयास से व्यथित होता हूँ। तब मैं अपने विचार लिखता हूँ एवं उस पार्टी के पक्ष में लिखता हूँ जो मुझे अधिक अच्छी राष्ट्रवादी पार्टी प्रतीत्त होती है।
सादर सभी मित्रों को – नमन