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Asaduddin Owaisi की नई रणनीति! क्या राष्ट्रवादी तेवर से बदलेगी उनकी छवि या जनता रहेगी सख्त?

Asaduddin Owaisi: पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से असदुद्दीन ओवैसी का अंदाज एकदम बदला हुआ नजर आ रहा है। अब वह पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ वैसे ही तीखे तेवर अपना रहे हैं जैसे आमतौर पर बीजेपी नेता अपनाते हैं। बिहार के ढाका में ओवैसी ने तिरंगे की पगड़ी पहनकर आतंकवाद के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि अब पाकिस्तान को समझाने का नहीं बल्कि उसे करारा जवाब देने का वक्त है। उनके मंच पर बड़ा बैनर भी लगा था जिस पर लिखा था ‘ओवैसी का आतंकवाद के खिलाफ जिहाद’। इस नए रूप में ओवैसी एक राष्ट्रवादी नेता की छवि गढ़ने की कोशिश में हैं लेकिन सवाल है कि क्या वह अपनी मुस्लिम छवि से बाहर निकल पाएंगे।

ओवैसी की मुस्लिम छवि और उसके फायदे

AIMIM के नेता और ओवैसी के सहयोगी इम्तियाज जलील कहते हैं कि आज के समय में कोई भी ऐसा मुस्लिम नेता नहीं है जो ओवैसी जितनी जोरदार आवाज संसद में उठाता हो। मुस्लिम समुदाय में ओवैसी की लोकप्रियता इसी वजह से है कि उन्होंने बाबरी मस्जिद से लेकर ट्रिपल तलाक सीएए एनआरसी और वक्फ एक्ट जैसे तमाम मुद्दों पर खुलकर बात की है। उनकी भाषण शैली और तर्क बहुत मजबूत होते हैं और वह खुद को मुसलमानों का मसीहा बताने में सफल रहे हैं। इसी पहचान के दम पर उन्होंने न सिर्फ हैदराबाद बल्कि महाराष्ट्र बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी राजनीतिक पकड़ बनाई।

Asaduddin Owaisi की नई रणनीति! क्या राष्ट्रवादी तेवर से बदलेगी उनकी छवि या जनता रहेगी सख्त?

ओवैसी ने मुस्लिम वोटबैंक के बलबूते AIMIM को हैदराबाद के चारमीनार से बाहर निकाल कर देशभर में पहचान दी। AIMIM के सात विधायक तेलंगाना से हैं और महाराष्ट्र में लगातार तीसरी बार पार्टी ने जीत दर्ज की है। 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में AIMIM ने पांच सीटें जीतीं हालांकि सभी उम्मीदवार मुस्लिम ही थे। पार्टी का नेतृत्व भी मुस्लिम नेताओं के हाथ में है जैसे उत्तर प्रदेश के शौकत अली और बिहार के अख्तरुल ईमान। यही कारण है कि AIMIM की छवि एक मुस्लिम पार्टी की बन चुकी है और हिंदू समुदाय के लोग उनसे दूरी बनाए रखते हैं। यही बात ओवैसी भी समझते हैं कि केवल मुस्लिम राजनीति के दम पर राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका नहीं निभाई जा सकती।

राष्ट्रवादी छवि की ओर बढ़ते कदम

पहलगाम हमले के बाद ओवैसी ने पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ जिस सख्त लहजे में बयान दिया उससे उनकी राष्ट्रवादी छवि उभरकर सामने आई है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को अब सबक सिखाना जरूरी है और देश को एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ लड़ना होगा। उन्होंने सरकार से मांग की कि हमले में मारे गए लोगों को शहीद का दर्जा दिया जाए। ओवैसी ने साफ किया कि वह सरकार के साथ खड़े हैं और आतंकवाद के खिलाफ हर कदम में समर्थन देंगे। इस नई छवि के पीछे एक रणनीति भी नजर आती है जिससे वह न सिर्फ पाकिस्तान को कठोर संदेश देना चाहते हैं बल्कि हिंदू समुदाय में भी विश्वास बनाना चाहते हैं।

ओवैसी अब यह भी प्रयास कर रहे हैं कि भारत के मुसलमानों को पाकिस्तान से जोड़े जाने की मानसिकता को खत्म किया जाए और एक भारतीय मुस्लिम पहचान को मजबूत किया जाए। उन्हें यह भी समझ है कि केवल मुस्लिम वोट से वह सीमित सीटें ही जीत सकते हैं लेकिन अगर वह हिंदू समुदाय में विश्वास बना सकें तो उनकी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सकती है। इसीलिए इस बार उन्होंने बिहार के ढाका सीट से हिंदू उम्मीदवार राणा रंजीत सिंह को टिकट दिया है। अगर राणा रंजीत को थोड़े भी हिंदू वोट मिलते हैं तो AIMIM को नई दिशा मिल सकती है। ओवैसी ने इस बार बिहार में 24 सीटें जीतने का दावा किया है और इस लक्ष्य को पाने के लिए वह मुस्लिम राजनीति की सीमाओं से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। अब देखना होगा कि उनकी राष्ट्रवादी रणनीति उन्हें कितनी दूर तक ले जाती है।

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