Himachal Pradesh की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। राज्य के खजाने की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि हाल ही में सरकार ने मंदिरों से चढ़ावे के रूप में दान लिया ताकि किसी तरह राज्य को चलाया जा सके। ऐसी आर्थिक तंगी के समय जब जनता उम्मीद करती है कि सरकार और अधिकारी फिजूलखर्ची से बचें तब कुछ ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जो हैरान कर देने वाले हैं।
अब जो मामला सामने आया है उसने लोगों को चौंका दिया है। होली के मौके पर हिमाचल प्रदेश की मुख्य सचिव प्रमोद सक्सेना ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों और उनके परिवार वालों को एक पार्टी दी। यह पार्टी शिमला के होटल हॉलिडे होम में आयोजित की गई थी जिसमें 75 अधिकारियों और उनके परिवार वालों को बुलाया गया। इस पार्टी का कुल बिल बना एक लाख बाईस हजार रुपये जो सरकार को भेजा गया है।
इस होली पार्टी में अधिकारियों के साथ आए 22 ड्राइवरों के लिए भी अलग से भोजन की व्यवस्था की गई थी। ड्राइवरों के लंच का बिल बना बारह हजार आठ सौ सत्तर रुपये जबकि बाकी 75 लोगों के लंच और स्नैक्स का बिल बना एक लाख नौ हजार एक सौ पचास रुपये। कुल मिलाकर यह खर्च एक लाख बाईस हजार बीस रुपये तक पहुंच गया। यह बिल सामान्य प्रशासन विभाग यानी जीएडी को भेजा गया है लेकिन अभी तक पास नहीं हुआ है।
इस लंच पार्टी की तस्वीरें और बिल अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही हैं। जिस समय राज्य की आर्थिक स्थिति डगमगा रही है और जनता जरूरी सुविधाओं के लिए संघर्ष कर रही है उस वक्त इस तरह की सरकारी खर्च पर पार्टी ने लोगों को आक्रोशित कर दिया है। इस बीच एक और बात सामने आई है कि प्रमोद सक्सेना को 31 मार्च 2025 से सेवा विस्तार मिल चुका है और वे अगले 6 महीने तक पद पर बनी रहेंगी। लेकिन इस बिल के सामने आने के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं।
बीजेपी नेताओं विक्रम सिंह ठाकुर और रणधीर शर्मा ने इस पूरे मामले को लेकर सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी खर्चे पर इस तरह अफसरों और उनके परिवार वालों को पार्टी देना सिविल सेवा आचरण नियम 1964 का उल्लंघन है। इस नियम के अनुसार अधिकारी निष्पक्ष और ईमानदार होने चाहिए। उन्होंने कहा कि जब राज्य की आर्थिक हालत इतनी गंभीर है तब यह फिजूलखर्ची सरकारी खजाने को लूटने के बराबर है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार ने हाल ही में नेशनल हेराल्ड को ढाई लाख रुपये का विज्ञापन दिया जबकि उस अखबार की एक भी प्रति हिमाचल प्रदेश में नहीं पहुंचती। यह भी सरकारी पैसे की बर्बादी है।
इस पूरे विवाद में जनता के बीच गुस्सा है और वे जानना चाहते हैं कि जब राज्य में पैसा नहीं है तब इस तरह की रंगीनियां क्यों हो रही हैं। क्या यह वही सरकार है जिसने मंदिरों से दान लेकर अपने खर्च चलाने शुरू किए थे। लोग सोशल मीडिया पर सरकार से जवाब मांग रहे हैं लेकिन अब तक सरकार की ओर से कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। अधिकारी भी इस मामले में कुछ बोलने से बच रहे हैं।
इस मामले ने एक और बड़ी बहस को जन्म दिया है कि क्या सरकार और अधिकारियों पर नियमों की पालना का कोई दबाव नहीं है। जब आम जनता को छोटी गलतियों पर दंडित किया जाता है तब अधिकारी सरकारी खर्चे पर पार्टी कर सकते हैं क्या यह उचित है। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस बिल को पास किया जाएगा या नहीं और क्या प्रमोद सक्सेना के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी।