Meta: करीब एक दशक पहले मेटा कंपनी ने वॉट्सएप और इंस्टाग्राम को खरीदा था। उस वक्त यह सौदा कंपनी की बड़ी उपलब्धि माना गया था। लेकिन अब यही सौदा मेटा के लिए सिरदर्द बन गया है। अमेरिका की फेडरल ट्रेड कमीशन यानी एफटीसी ने इसे गैरकानूनी करार दे दिया है। सोमवार 15 अप्रैल को एफटीसी ने मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग से तीखे सवाल पूछे। इस मामले की सुनवाई ट्राइब्यूनल कोर्ट में शुरू हो गई है। एफटीसी का आरोप है कि मेटा ने यह सौदे केवल प्रतिस्पर्धियों को खत्म करने के लिए किए थे। अगर कोर्ट ने यह सौदे रद्द किए तो मेटा को वॉट्सएप और इंस्टाग्राम से हाथ धोना पड़ सकता है।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान मार्क जुकरबर्ग ने कहा कि यह सौदे इसलिए किए गए थे ताकि यूजर्स को बेहतर अनुभव मिल सके और तकनीकी नवाचार हो सके। उन्होंने कहा कि मेटा के प्लेटफॉर्म्स ने बीते वर्षों में काफी सुधार किया है। आज लोग अपने दोस्तों से ज्यादा ग्रुप्स और विशेष रुचियों वाले कंटेंट से जुड़ रहे हैं। मेटा का उद्देश्य हमेशा से परिवार और दोस्तों के बीच कनेक्शन को मजबूत करना रहा है।
एफटीसी के मुख्य वकील डैनियल मैथेसन ने अपने शुरुआती बयान में फेसबुक इंस्टाग्राम और वॉट्सएप तीनों को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने कहा कि मेटा ने यूजर्स को कोई अन्य विकल्प नहीं छोड़ा है। इन ऐप्स के जरिए मेटा ने पूरी सोशल नेटवर्किंग मार्केट पर कब्जा कर लिया है। उन्होंने कहा कि मेटा ने प्रतिस्पर्धियों को खत्म करने के इरादे से इंस्टाग्राम और वॉट्सएप को खरीदा था।
एफटीसी ने कोर्ट में साल 2012 के इंटरनल ईमेल्स पेश किए। इसमें दिखाया गया कि फेसबुक ने इंस्टाग्राम को प्रतिस्पर्धियों को बेअसर करने के लिए खरीदा था। जुकरबर्ग ने इसका जवाब देते हुए कहा कि 2012 में इंस्टाग्राम और 2014 में वॉट्सएप की डील को नियामकों ने मंजूरी दी थी। अब एक दशक बाद इन ईमेल्स के आधार पर डील को चुनौती देना उचित नहीं है। मंगलवार को जुकरबर्ग को फिर से कोर्ट में अपना पक्ष रखना होगा।
अगर कोर्ट में एफटीसी की जीत होती है तो मेटा को इंस्टाग्राम और वॉट्सएप को अलग करना पड़ सकता है। इन दोनों प्लेटफॉर्म्स का मेटा के साथ सालों से इंटीग्रेशन रहा है। इसके अलग होने से कंपनी के विज्ञापन मॉडल पर बड़ा असर पड़ सकता है। खास बात यह है कि साल 2025 में अकेले इंस्टाग्राम से मेटा को अमेरिका में आधी से ज्यादा विज्ञापन की कमाई होने की उम्मीद है।
मेटा के लिए यह ट्रायल अगले आठ हफ्तों तक चलने वाला है। इस दौरान कंपनी को अपनी रणनीतियों का बचाव करना होगा। कोर्ट में एफटीसी की दलीलों से यह बात साफ हो रही है कि सरकार टेक कंपनियों के वर्चस्व को लेकर अब ज्यादा गंभीर हो गई है। इस केस का असर बाकी टेक कंपनियों पर भी पड़ सकता है।
फिलहाल मेटा के लिए यह केस एक बड़ी चुनौती बन चुका है। अगर कोर्ट मेटा के खिलाफ फैसला देती है तो यह तकनीकी दुनिया में एक नया इतिहास रच सकता है। मेटा को दो सबसे बड़ी सोशल मीडिया सेवाओं से अलग होना पड़ सकता है। इससे न सिर्फ कंपनी की साख पर असर पड़ेगा बल्कि इसकी आर्थिक स्थिति भी डगमगा सकती है।