आयुष्मान अरोग्य मंदिर
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बना भैसो का तबेला
सुशील उचबगले
गोरेघाट तिरोड़ी
सरकार एक ओर गरीबों के लिए कितना कुछ नही कर रही है मगर अधिकारी की लापरवाही से सब धरा के धरा रह जाता है आयुष्मान कार्ड, आभा कार्ड बनाने के बाद भी कोई सुविधा नहीं, सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ऐसा लगता है की सरकारी सुविधाएं सभी को अच्छे से मिल रही है । चाहे आंगनवाड़ी हो, सरकारी स्कूल हो, ग्राम पंचायत हो, वन विभाग हो सब कागजों पर योजनाएं चल रही है जबकि जमीनी हकीकत कुछ और है इसका एक उदाहरण प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोरेघाट जिसे आयुष्मान अरोग्य मंदिर का नाम दिया गया है, जिला मुख्यालय से 100 किलो मीटर दूर और ब्लॉक मुख्यालय से 45 किलो मीटर दूर जो मध्यप्रदेश के आखरी छोर पर बसा है तब ग्राम गोरेघाट में प्रह्लाद सिंग पटेल के द्वारा इस अस्पताल का लोकार्पण कुछ बरसों पहले हुआ था। जिसमे 40 बेड का अस्पताल जिसमे दर्जनों गांव गोरेघाट के अलावा हेटी, कुडवा, आगरी, खैरलांजी, अंबेझरी, कन्हडगांव, भोंडकी, देवरी, कसारकाड़ी नया टोला, संग्रामपुर, आदि अनेकों गांव की जनसंख्या में यह अस्पताल खोला गया ताकि इन गांव के मजदूर गरीब तबके के लोगो को अच्छी से अच्छी सुविधा मिल सके मगर आज यह ये आलम है की इतने गांव मिलाकर मात्र 10 ओपीडी ही बहुत मुस्किल से आ रही है जिसमे अनेकों कमियों के कारण यहा की व्यवस्था डगमगा गई है या यो कहिए की सरकार को बदनाम करने की साजिश रची जा रही है।
नही रहता स्टाफ
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोरेघाट में डा जगजीवन मेश्राम एम ओ, श्रीमती गंगासागर वासनिक स्टाफ नर्स, श्रीमती वनिता रहागडाले फील्ड वर्कर, श्रीमती धानेश्वरी घोरमारे टेली कलेक्शन, श्रीमती सुनैना चित्रिव डीईओ, सुलोचना पिलगेर दाई, रितेश रामटेके सफाई कर्मचारी, संदीप बागड़े सुरक्षा गार्ड आदि स्टाफ है जिसमे डाo जगजीवन मेश्राम की ड्यूटी महकेपार होने से वो कभी नही पहुंच पाते है। गंगासागर वासनिक जो स्टाफ नर्स है वो महज महीने में मात्र हस्ताक्षर करने आती है अगर कोई प्रसूति महिला रात या दिन में आ जाए तो यहां कोई भी स्टाफ डिलेवरी नही करा सकता क्योंकि जो गंगासागर वासनिक स्टाफ नर्स है वो कभी यहां रहती ही नही है और जो वनिता राहंगडाले है वो फील्ड वर्कर होने से उन्हे प्रसूति का प्रशिक्षण नही दिया गया है इसीलिए वे प्रसूति नही करा सकती है जिसके कारण यहां अप्रैल महीने में एक भी प्रसूति नही हुई है। रोज की करीब 10 ओपीडी रहती जिसमे धानेश्वरी घोरमारे द्वारा ऑनलाइन मरीज दिखाकर इलाज किया जाता है। अगर मरीज को दवाई की जरूरत है तो दवाई देने वाला फार्मासिस्ट भी नही है जो दवाएं दे सके।
कचरे का भंडार
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोरेघाट में जाने के बाद ऐसा लगता है की जैसे भैंस के तबेले में आ गए हैं। पूरे परिसर में इतनी घास और कचरा भरा पड़ा है की अगर दिन एक सर्प या बिच्छू निकल जाए तो दिखाई न दे जबकि प्रति वर्ष सफाई के लिए अतिरिक्त पैसा आता है जो अधिकारी पूरा का पूरा डकार रहे है। जबकि सफाई इसीलिए जरूरी है आस पास खेत है और खेतो में हमेशा पानी भरा रहता है जिससे खेतो से सर्प बिच्छू आना जायज है क्युकी यह पर आस पास दीवार नही है। प्रसूति रूम में ना तो कूलर है और ना ही ए सी लगी है महज एक कूलर है जिसका टब सड़ चुका है जिससे कूलर बिना पानी से चल रहा है जो आग उगल रहा है और तो और यह का फ्रिज अलमारी का डब्बा बना पड़ा है जो पिछले कई वर्षो से बंद पड़ा है।
ना इन्वर्टर ना कंप्यूटर
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोरेघाट में डीईओ की पोस्ट पिछले दो वर्षो से दी गई है मगर अभी तक यहां कंप्यूटर और प्रिंटर नही लगा है और यहां कई साल पहले इन्वर्टर लगा था जो अब किस कचरे में पड़ा है किसी को इसकी जानकारी नही है पिछले 4 वर्षो से इन्वर्टर खराब हुआ है तब से आज तक इन्वर्टर नहीं लगा है अगर प्रसूति के समय लाइट बंद हो जाए तो मरीज को अपने घर से एमरजेंसी बल्ब की व्यवस्था खुद करनी पड़ती है।
नही है फार्मासिस्ट
कुछ समय पहले फार्मासिस्ट की नियुक्ति हुई थी मगर उसका स्थानांतरण लालबर्रा किया गया मगर उसके बदले किसी की भी यहां नियुक्ति नहीं की गई तब से लेकर आज तक दवाइयों का अभाव रहता है जिससे मरीजों को उचित दवाइयां नहीं मिल पाती है और दवाइयां नहीं मिलने से यहां मरीज आना ही पसंद नही करते है।
दाई करती है मरहम पट्टी
बड़े दुर्भाग्य की बात है एक ओर दवाई दुकान वाला अपनी मर्जी से बिना डाक्टर के पर्ची के दवाई नहीं दे सकता वही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में कोई भी कर्मचारी जेसे दायिन के द्वारा मरहम पट्टी करी जाती है कोई भी दवाई दे देता है उसका कोई दायरा नही है ।
बिना डाक्टर के हो रहा इलाज
कुछ समय पहले यहां स्टॉफ नर्स के रुप में मोनिका संग्रामे कार्यरत थी तब यहां की व्यवस्था काफी अच्छी थी और जब से उनका स्थानांतरण तिरोडी हुआ है और यहां श्रीमति गंगासागर वासनिक आई है तब से पूरी व्यवस्था बिगड़ गई है और प्रसूति के लिए प्रसूता या तो तुमसर महाराष्ट्र चली जाती है या भंडारा महाराष्ट्र चली जाती है जिसके कारण मध्य प्रदेश की सरकारी योजना का लाभ भी उन्हें नही मिल पाता है।
बंद होना चाहिए ये अस्पताल
ग्रामिणो की माने तो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र गोरेघाट को बंद कर देना चाहिए ताकि ना रहे बास ना रहे बांसुरी ना रहेगा अस्पताल और ना होगी कोई परेशानी। ऐसा लगता है की इस अस्पताल में कभी ना सरपंच और ना पंच ध्यान देते है सारा का सारा सरकारी अमला हराम की कराई खा रहा है । काम करना नहीं है मगर उचित चोखा दाम लेना ही लेना है।
इनका कहना है
मुझे आपके द्वारा सारी जानकारी दी मैं इसे प्राथमिकता से 3 से 4 दिन के अंदर दिखवाता हु ।
डा मनोज पांडे सीएमएचओ बालाघाट
मैने इस बारे मे बीओ सर को बहूत बार लिखित मे जानकारी दिया हु मगर कोई कार्यवाही नहीं की गयीl डॉ जगजीवन मेश्राम mo