“सावित्रीबाई फुले देश की प्रथम शिक्षिका”
इनका जन्म 6 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के नए गांव नामक गांव में हुआ था केवल 9 साल की सावित्रीबाई का विवाह 13 साल के ज्योतिबा राव फुले से कर दिया गया।
9 साल की होने पर भी उन्हें स्कूली शिक्षा नहीं मिल पाई थी, क्योंकि उनके पिता और सब लोगों का मानना यह था कि शिक्षा सिर्फ उच्च वर्ग पुरुषों के लिए ही है।
ज्योतिबाराव जिससे सावित्रीबाई का विवाह हुआ था उनकी सोच यह थी कि दलित और महिलाओं की आत्मनिर्भरता शोषण से मुक्त और विकास के लिए शिक्षा का बहुत महत्व है, उन्होंने इस सोच को आगे बढ़ाने की शुरुआत सावित्रीबाई फुले को शिक्षित करके की।
सावित्रीबाई एक जाना माना नाम है जो देश की प्रथम महिला शिक्षिका समाज सुधारक और साहित्यकार थी उन्होंने 19वीं शताब्दी में अपने पति के साथ मिलकर शिक्षा के क्षेत्र में एक साथ स्त्री अधिकार,छुआछूत,सती प्रथाओं, विधवा विवाह, बाल विवाह और अंधविश्वास के खिलाफ संघर्ष किया आज से डेढ़ सौ साल पहले जब कोई यह सोच भी नहीं सकता था की लड़कियों को भी शिक्षा का अधिकार है तब उन्होंने एक समाज सुधारक के रूप में अपने पति ज्योतिरावब फुले के साथ मिलकर एक बहुत बड़ा कदम उठाया।
सावित्रीबाई फुले ने ज्योति राव के साथ मिलकर 1848 में पुणे में एक बालिका विद्यालय की शुरुआत की जिसमें पिछड़ी जातियों के बच्चे और लड़कियों की संख्या ज्यादा थी।
सावित्रीबाई का रोज घर के स्कूल तक का सफर बहुत कठिन रहा उन्होंने बहुत कठिनाइयों का सामना किया जैसे कि जब वह घर से निकलती थी तो लोग उन पर गोबर पानी आदि डालकर उनका रास्ता रोकने के कोशिश करते थे उन्होंने कभी हार नहीं मानी और उनने हमेशा समाज सुधारक के रूप में नियंत्रण काम करती रही।
उन्होंने 1 जनवरी 1848 से लेकर 15 मार्च 1852 के दौरान लड़कियों के लिए 18 विश्वविद्यालय खोले उसे समय यह क्रांतिकारी के लिए कोई सोच भी नहीं सकता था। तब सावित्रीबाई ने हमेशा अपने विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से कहती थी “कि कड़ी मेहनत करो अच्छे से पढ़ाई करो और अच्छा काम करो”
सावित्रीबाई फूल ने ज्योतिबा फुले के साथ मिलकर महिलाओं की दशा सुधारने के लिए 1852 में महिला मंडल की स्थापना की 1853 में बाल हत्या प्रबंधक गृह, 1855 में मजदूरों के लिए रात्रि पाठशाला खोला, और उन्होंने 24 सितंबर 1873 को पहले दंपति की सत्यशोधक समाज की स्थापना कर विधवा विवाह की परंपरा शुरू की, जब अकाल पड़ता तब वह जरूरतमंदों को मुफ्त में भजन की व्यवस्था भी करती, जब 1897 में पुणे में भयंकर महामारी का दौरान सावित्रीबाई फुले ने डॉक्टर यशवंत की मदद से एक अस्पताल खोला देव बीमार लोगों के पास जाति सेवा करती देखभाल करती और हॉस्पिटल सबको लाती थी।
इस महामारी के चलते वह भी 10 मार्च 19 1897 को इस समय हमारी की चपेट में आ गई और उनका निधन हो गया सावित्रीबाई ने अपने जीवन में कई संघर्ष करें जिसमें उनके साथ देते उनके पति ज्योति राव पहले हमेशा उनके साथ खड़े रहे, दोनों ने मिलकर समाज सुधार के लिए तथा पिछड़े वर्गों के लिए बहुत संघर्ष की शिक्षा प्रदान करें स्वास्थ्य अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करें तथा मजदूरों के लिए रात्रि शिक्षा का भी आयोजन किया उन्होंने अछूतों के लिए अपने हुए को भी खोल दिया जिसमें अछूत लोग जिन्हें किसी के भी कुएं से पानी पीने की इजाजत नहीं होती थी वह उनके कुए से पानी लेकर जाते थे ।
सावित्रीबाई फुले का यह सपना था कि देश की हर बच्ची और हर लड़की महिलाएं शिक्षित हो लेकिन इसके लिए हमें पहले परिवार और समाज को यह समझना पड़ेगा की बालिका शिक्षा का महत्व क्या है और अगर लड़कियों को मौका दिया जाए तो वह जीवन में बहुत आगे बढ़ेगी और पुरुष से कई गुना अच्छा काम करेगी।