Bihar Politics: कांग्रेस ने इस बार साफ कर दिया है कि वह बिहार की राजनीति में अब फ्रंट फुट पर खेलेगी। दिल्ली में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की मुलाकात इसी रणनीति का हिस्सा थी। पहले कांग्रेस के नेता चुनावी मुद्दों पर लालू यादव के दरबार में जाया करते थे। लेकिन अब कांग्रेस का अंदाज बदल गया है। इस बार कांग्रेस अपने शर्तों पर बातचीत करना चाहती है और यह संकेत उसने तेजस्वी को दिल्ली बुलाकर दे दिया है।
मंगलवार को राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की करीब एक घंटे लंबी मुलाकात हुई। यह मुलाकात पटना में होने वाली महागठबंधन की बैठक से पहले हुई थी। बैठक के बाद तेजस्वी का बयान आया कि मीडिया को मुख्यमंत्री चेहरे की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह तय किया जाएगा कि चुनाव से पहले या बाद में इसका ऐलान होगा। इस बयान से तेजस्वी की उलझन साफ नजर आई जबकि बैठक से पहले वे खुद को सीएम चेहरा बता चुके थे।
बैठक से पहले कांग्रेस ने राजद के सामने अपनी शर्तें साफ कर दी हैं। कांग्रेस बिहार में सत्तर से कम सीटें नहीं मानेगी। साथ ही वह उन्हीं सीटों पर लड़ेगी जहां जीत की संभावना ज्यादा होगी। कांग्रेस के नेता कृष्णा अलवरू और सचिन पायलट पहले ही कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री चेहरा चुनाव के बाद तय होगा। इसका असर तेजस्वी पर साफ दिखा क्योंकि पहले जो नेता खुद को सीएम चेहरा बता रहे थे वे अब टालमटोल कर रहे हैं।
दिल्ली में बैठक से पहले राजद ने जोर शोर से ऐलान किया था कि तेजस्वी यादव ही बिहार के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हैं। राजद का कहना था कि बिहार की जनता उन्हें अपना नेता मान चुकी है। लेकिन बैठक के बाद सुर बदल गए। तेजस्वी ने खुद कहा कि यह फैसला चुनाव से पहले या बाद में होगा। इससे लग रहा है कि कांग्रेस ने राजद पर दबाव बना लिया है और तेजस्वी को अब पहले जैसी आज़ादी नहीं रही।
बीजेपी और जेडीयू का तंज और हमला
बीजेपी और जेडीयू इस पूरे घटनाक्रम पर तीखी नजर रखे हुए हैं। बीजेपी ने इस बैठक पर तंज कसते हुए कहा कि कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को वेटिंग लिस्ट में डाल दिया है। वही जेडीयू ने कहा कि अगर कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी तेजस्वी के नेतृत्व को स्वीकार करती है तो यह कांग्रेस की दुर्गति का संकेत है। बीजेपी का कहना है कि ये सारे राजनीतिक ड्रामे केवल कुर्सी की लालच में हो रहे हैं। ये लोग कितना भी नाटक कर लें लेकिन नेतृत्व और दिशा तय नहीं होने वाली।
बिहार का महागठबंधन एक बार फिर मुख्यमंत्री चेहरे को लेकर असमंजस में नजर आ रहा है। जहां राजद तेजस्वी को आगे करना चाहता है वहीं कांग्रेस अपने शर्तों पर चलने के मूड में है। इस खींचतान से गठबंधन की एकता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। चुनाव नजदीक हैं लेकिन गठबंधन के भीतर तालमेल की कमी साफ झलक रही है।
कांग्रेस अब पहले वाली भूमिका में नहीं रहना चाहती। इस बार वह केवल सहयोगी पार्टी नहीं बल्कि किंगमेकर की भूमिका निभाना चाहती है। राहुल गांधी का यह नया तेवर बिहार की राजनीति में नया मोड़ ला सकता है। अगर कांग्रेस अपनी बात मनवाने में सफल होती है तो इससे उसका खोया हुआ जनाधार भी वापस आ सकता है।
महागठबंधन में इस समय भ्रम की स्थिति बनी हुई है। न तो नेता तय हैं न सीट बंटवारे का फॉर्मूला। ऊपर से बीजेपी और जेडीयू लगातार हमलावर हैं। ऐसे में कांग्रेस और राजद को जल्दी कोई स्पष्ट रणनीति बनानी होगी वरना ये राजनीतिक खेल हाथ से निकल सकता है।