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Phule Movie Release Postponed: जानिए ब्राह्मण संगठनों की आपत्ति और विवाद की पूरी कहानी

Phule Movie Release Postponed: Phule मूवी की रिलीज़ 11 अप्रैल से 25 अप्रैल कर दी गई है। जानिए फिल्म में क्या विवाद हुआ, ब्राह्मण संगठनों की क्या आपत्ति है और निर्देशक की प्रतिक्रिया।

महात्मा ज्योतिबा फुले—जिन्हें सामाजिक सुधारक, शिक्षा के अग्रदूत और डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर के तीसरे गुरु के रूप में जाना जाता है—उनकी जीवन यात्रा पर आधारित ‘Phule’ फिल्म पहले 11 अप्रैल को उनकी जयंती के अवसर पर रिलीज होने वाली थी। लेकिन अब इसकी रिलीज डेट बढ़ाकर 25 अप्रैल कर दी गई है।

फिल्म की कहानी क्या है?

यह फिल्म 19वीं सदी में सामाजिक असमानताओं और जाति व्यवस्था के खिलाफ फुले दंपत्ति के संघर्ष को दर्शाती है।

● प्रतीक गांधी ने महात्मा ज्योतिराव फुले की भूमिका निभाई है।

● पत्रलेखा सावित्रीबाई फुले के किरदार में हैं।

● फिल्म का निर्देशन अनुभवी निर्देशक अनंत महादेवन ने किया है।

फिल्म में फुले दंपत्ति द्वारा लड़ी गई लड़ाई—लिंग भेद, जातिवाद और शिक्षा के अधिकार के लिए संघर्ष—को ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर दिखाया गया है।

रिलीज में देरी का कारण क्या है?

रिलीज डेट में बदलाव का कारण महाराष्ट्र के कई ब्राह्मण संगठन की आपत्ति बताई जा रही है। उन्होंने Central Board of Film Certification (CBFC) को पत्र लिखकर फिल्म में 12 बदलाव की मांग की है।

इनमें से कुछ आपत्तिजनक माने गए दृश्य और संवाद ये हैं:

एक संवाद जिसमें फुले कहते हैं: “ये अंग्रेजों की गुलामी तो सिर्फ 100 साल की है, लेकिन जिस गुलामी से मैं लड़ना चाहता हूँ वो 3000 साल पुरानी है।” इस संवाद में “3000 साल” शब्द को “कई वर्ष” से बदलने की मांग की गई है।

एक दृश्य जिसमें सावित्रीबाई फुले पर एक ब्राह्मण बच्चा कीचड़ फेंकता है, उसे हटाने की मांग की गई है।

निर्देशक की प्रतिक्रिया:

निर्देशक अनंत महादेवन ने कहा:

> “यह सब एक गलतफहमी है। मैं खुद ब्राह्मण हूँ—मैं क्यों अपने ही समाज को गलत दिखाऊँगा? हमने केवल ऐतिहासिक तथ्य दिखाए हैं। कुछ ब्राह्मणों की मदद भी फिल्म में दिखाई गई है, जैसे सत्यशोधक समाज की स्थापना और स्कूल खोलने में।”

प्रकाश आंबेडकर की प्रतिक्रिया:

प्रकाश आंबेडकर ने इस विवाद पर टिप्पणी करते हुए लिखा:

 

“अगर यह फिल्म आपकी भावना आहत करती है, तो फिर गुलामगिरी का क्या? अगर पूरा देश ‘गुलामगिरी’ पढ़ने लगे तो क्या होगा?”

एक बड़ा सवाल:

अब सवाल ये है—क्या आज के युवाओं को इतिहास से वंचित रखना चाहिए? क्या हमें सिर्फ इसलिए इतिहास के तथ्यों को छुपाना चाहिए क्योंकि वो किसी की भावना को आहत करते हैं?

पहले भी फुले पर फिल्म बन चुकी है, तो अब किस बात का डर है?

Adv. Mahak Tirpude ✍️

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